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भारतीय संस्कृति है न्याय संहिता का मूल आधार: डॉ आनंद त्रिपाठी

*एमसीयू जनसंचार विभाग में ‘भारतीय न्याय संहिता का भारतीयकरण’ पर विशेष व्याख्यान**

**भोपाल।** भारतीय न्याय संहिता का आधार भारतीय परंपरा और संस्कृति में गहराई से जुड़ा हुआ है। यह बात **राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय, गांधीनगर (गुजरात)** के एडजंक्ट प्रो वीसी **डॉ. आनंद कुमार त्रिपाठी** ने कही। वे **माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू)** के जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान में विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। व्याख्यान का विषय था **”भारतीय न्याय संहिता का भारतीयकरण”**।

डॉ. त्रिपाठी ने भारतीय न्याय प्रणाली पर गहन चर्चा करते हुए भारतीय वांग्मय के प्रमुख ग्रंथों जैसे **गीता**, **रामचरितमानस**, और आधुनिक कवियों जैसे **मैथिलीशरण गुप्त** की रचनाओं का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने मौजूदा न्याय संहिता के कई कानूनों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था को हमारी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं से प्रेरित किया गया है।

डॉ. त्रिपाठी ने अपने व्याख्यान में भारतीय न्याय संहिता को सरल भाषा में आम जनता तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं के कुछ अंश भी साझा किए, जिनके माध्यम से उन्होंने न्याय संहिता को सरल और रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। इसके साथ ही, उन्होंने विद्यार्थियों के कानूनी समस्याओं से जुड़े सवालों का भी उत्तर दिया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में वरिष्ठ पत्रकार **श्री सरमन नगेले** ने विषय की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। जनसंचार विभाग की विभागाध्यक्ष **डॉ. आरती सारंग** ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन **डॉ. प्रदीप डेहरिया** ने किया। अंत में, विभाग के वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक **डॉ. लाल बहादुर ओझा** ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर **संजय द्विवेदी** सहित अन्य प्राध्यापक, संकाय सदस्य और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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