दिल्ली का लाल किला, जहां आजाद हिंद फौज के क्रांतिकारियों को कैद किया गया था, एक ऐसे दौर का प्रतीक है जब फिरंगी सरकार ने हिंदू और मुसलमानों के बीच भेदभाव बढ़ाने की कोशिश की। सरकार का हुक़्म था कि हिंदू चाय अलग बनेगी और मुसलमान चाय अलग बनेगी।
क्रांतिकारियों ने इस भेदभाव का सामना एक अनोखे तरीके से किया। वे दोनों चायों को एक बड़े बर्तन में मिलाते और मिलकर पीते। यह प्रतीकात्मक कदम उनके एकता और भाईचारे के संदेश को दर्शाता था।
महात्मा गांधी ने इन क्रांतिकारियों से मुलाकात की और उनकी एकता की भावना को सराहा। उन्होंने बताया कि सुभाष चंद्र बोस का सबसे बड़ा योगदान एक ऐसे संगठन का निर्माण करना था जिसमें हिंदू और मुसलमान का भेद मिट गया था।
लाल किले से लौटने के बाद गांधी जी ने कहा, “सुभाष चंद्र बोस एक राष्ट्रवादी नेता हैं और उनका सबसे बड़ा योगदान एक पूरा संगठन खड़ा करना और उसमें हिंदू मुसलमान का भेद मिटा देना है। इसके लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं।”
जब आजाद हिंद फौज के सभी सैनिक बरी हो गए, तो कैप्टन प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन, और मेजर जनरल शाहनवाज खान गांधी जी से मिलने गए। कर्नल ढिल्लन ने अपनी आत्मकथा ‘फ्रॉम माय बोन्स’ में लिखा है कि गांधी जी ने मुस्कुराते हुए पूछा, “तुम तीनों में से ब्रह्मा, विष्णु, महेश कौन-कौन है।” इस पर कर्नल ढिल्लन ने कहा, “आपने तो हमें इतना बड़ा बना दिया। अब आप ही यह भी तय कर दीजिए।” सब लोग हंसने लगे।
आज, हिंदू और मुसलमान चाय का फिरंगी दौर लौट आया है। यह आप पर है कि आप क्या चाहते हैं – नफरत के हजार बहाने या प्रेम और शांति की एकता।