World

जब अमेरिका में पत्रकार को लाइव कैमरे पर मारी गोली, लेकिन “फ्री प्रेस” पर सवाल भारत पर!

प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (Press Freedom Index) में भारत की रैंकिंग को लेकर पश्चिमी देशों द्वारा की गई आलोचना।

नई दिल्ली / वॉशिंगटन । पत्रकारिता की आज़ादी पर बात करते हुए जब पश्चिमी देश उंगली उठाते हैं, तो बाकी तीन उंगलियां खुद पर ही उठी नज़र आती हैं। हाल ही में एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार को अमेरिकी पुलिस द्वारा लाइव कैमरे के सामने गोली मारे जाने की घटना ने तथाकथित “लोकतंत्र के संरक्षकों” के चेहरे से नकाब हटा दिया है।

घटना अमेरिका में हुई, कैमरा ऑन था, पत्रकार का माइक ऑन था… और पुलिस की बंदूक भी।
विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग कर रहे इस पत्रकार को सुरक्षा बलों ने बिल्कुल सामने से निशाना बनाकर गोली मार दी। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, लेकिन ‘ग्लोबल मीडिया’ अभी तक इसे “अपवाद” बताकर टालने में जुटी है।

लेकिन जब बात भारत की आती है…

उधर, उसी समय प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (Press Freedom Index) में भारत को फिर से निचले पायदान पर दिखाया गया है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) की इस रिपोर्ट में भारत की आलोचना की गई, लेकिन अमेरिका, फ्रांस, और ऑस्ट्रेलिया में हो रही पुलिसिया बर्बरता, मीडिया संस्थानों पर कारपोरेट नियंत्रण और पत्रकारों की हत्या को शायद ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ माना गया।

भारत की मीडिया चुनौतियां अपनी जगह हैं…

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में भी पत्रकारों को कई बार दबाव, धमकी और राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या ये स्थिति सिर्फ भारत में है? क्या अमेरिका में, जहां पत्रकारों को लाइव कैमरे पर गोली मारी जा रही हो, वहां “पूर्ण स्वतंत्रता” है?

प्रश्न यही है कि कौन तय करता है प्रेस की आज़ादी?

जब पत्रकारिता की स्वतंत्रता की बात होती है, तो सिर्फ दक्षिण एशिया ही निशाने पर क्यों होता है? क्या पश्चिमी देशों की रिपोर्टिंग हमेशा पारदर्शी और निष्पक्ष होती है?
या फिर “विकासशील देशों” को हमेशा प्रेस की आज़ादी के मामले में कोसना एक पॉलिटिकल नैरेटिव का हिस्सा है?

निष्कर्ष: पत्रकारिता की गोली को सिर्फ आवाज़ से नहीं, नज़र से भी देखिए

जब अमेरिका में प्रेस के माइक को बंदूक से चुप कराने की कोशिश हो रही हो, तब भारत को प्रेस की स्वतंत्रता का ‘प्रवचन’ देना केवल पाखंड ही कहा जाएगा।

Related Articles