
मुरैना । यह घटना न केवल स्तब्ध कर देने वाली है, बल्कि हमारे समाज की उस गहरी बर्बर मानसिकता की भी तस्वीर पेश करती है जहाँ महिला की स्वतंत्र इच्छा को कोई महत्व नहीं दिया जाता। मुरैना जिले से आई इस ख़बर में एक विधवा माँ, जो पहले से ही जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझ रही थी, सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दी गई क्योंकि उसने अपने कर दिया।
यह मामला केवल हत्या नहीं, बल्कि चार स्तरों पर अपराध है:
1. मानवीय संवेदना की हत्या — तीन बच्चों की माँ को बेसहारा कर देना इस समाज की करुणा की कमी को दर्शाता है।
2. महिला की इच्छाशक्ति का दमन — महिला को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं देना, संविधान और नैतिकता दोनों के खिलाफ है।
3. पारिवारिक ज़बरदस्ती की पराकाष्ठा — जब ‘घर के लोग’ ही महिला की आज़ादी के सबसे बड़े दुश्मन बन जाएँ, तो फिर समाज किस मुँह से ‘परिवार’ की सुरक्षा की बात करता है?
4. विधवा होने की सामाजिक सज़ा — ये घटनाएँ दिखाती हैं कि एक विधवा महिला अब भी आधुनिक भारत में अपने लिए निर्णय नहीं ले सकती।
अब सवाल उन “सभ्य पुरुषों” से:
जिन्हें महिलाओं के किसी छोटे से अपराध पर ‘पूरी नारी जाति’ को कोसने में देर नहीं लगती,
क्या वे अब आगे आकर यह कहेंगे कि “सभी पुरुष हत्यारे होते हैं”?
क्या वे इस महिला के लिए न्याय की माँग करेंगे, या फिर यह मामला ‘घरेलू मामला’ समझ कर चुप रहेंगे?
अंत में…
यह घटना एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर करती है कि समाज में ‘महिला सशक्तिकरण’ केवल नारों में है या व्यवहार में भी?
विधवा, तलाकशुदा, या अकेली महिलाओं को कब वास्तविक सम्मान और सुरक्षा मिलेगी?
और कितनी मासूम ज़िंदगियाँ खत्म होंगी, तब तक हम केवल “खबर मध्यप्रदेश के मुरैना से” कहकर आगे बढ़ते रहेंगे?
उन तीन बच्चों के लिए न्याय माँगिए… क्योंकि उनकी माँ कोई ‘समाज की गलती’ नहीं थी, बल्कि समाज की क्रूरता की शिकार थी।