भोपाल स्मार्ट सिटी की लावारिस साइकिलें बनीं योजनागत विफलता का प्रतीक — सड़क किनारे जंग खा रही करोड़ों की संपत्ति

भोपाल । कभी स्मार्ट शहर की पहचान मानी गई साइकिल योजना अब प्रशासनिक विफलता और जनता की उदासीनता का जीवंत उदाहरण बन चुकी है। राजधानी भोपाल की लिंक रोड नंबर-1 सहित कई इलाकों में सड़क किनारे लावारिस हालत में पड़ी साइकिलें आज यह बताने को काफी हैं कि स्मार्ट सिटी योजना में कितनी सोच और क्रियान्वयन के बीच खाई रह गई।
करोड़ों की लागत, आज कबाड़ में बदल रही संपत्ति
भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BSCDCL) द्वारा संचालित इस परियोजना के तहत करीब 35 से 40 हजार रुपये प्रति साइकिल की लागत से स्मार्ट साइकिलें खरीदी गई थीं। इनके लिए विशेष स्टैंड, ऐप आधारित बुकिंग सिस्टम और ट्रैकिंग सुविधाएं विकसित की गईं थीं।
लेकिन आज की स्थिति यह है कि ये साइकिलें सड़क किनारे टूटी, जंग लगी, टायर फटे और हैंडल-सीट गायब हालात में पड़ी हुई हैं। न कोई देखभाल, न उपयोग — ये साइकिलें प्रशासनिक लापरवाही की मूक गवाह बन चुकी हैं।
मूल उद्देश्य रह गया अधूरा
योजना का उद्देश्य था:
पर्यावरण संरक्षण
फिटनेस को बढ़ावा
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का स्मार्ट विकल्प
लेकिन न तो इन्हें जनता ने अपनाया और न ही प्रशासन ने इन्हें लगातार अपडेट या मेंटेन रखने की जिम्मेदारी निभाई। नतीजतन, इस योजना की उपयोगिता शून्य हो गई।
देखरेख के नाम पर लाखों खर्च, फिर भी स्थिति दयनीय
सूत्रों के अनुसार साइकिलों की देखरेख के लिए नियोजित वाहन और कर्मचारी आज भी मौजूद हैं, जिन पर हर माह लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं। लेकिन ऐप आधारित बुकिंग नगण्य है और ग्राउंड पर साइकिलें सड़ती नज़र आ रही हैं।
जनता का मोहभंग: जिम बन गया नया विकल्प
आज की शहरी जीवनशैली में लोग जिम और इनडोर फिटनेस विकल्पों को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप स्मार्ट साइकिलों की मांग निरंतर घटी है और अब यह योजना सिर्फ कागजों और रिपोर्ट्स तक सीमित रह गई है।
यह योजना बनी ‘स्मार्ट’ शब्द की विफलता की मिसाल
8 वर्षों में केंद्र और राज्य सरकार से करोड़ों का बजट मिला
साइकिलों की संख्या हजारों में, पर उपयोगकर्ता हजार से भी कम
ऐप तकनीक के बावजूद सिस्टम निष्क्रिय
प्रशासन की ओर से कोई सुधारात्मक प्रयास नहीं