स्वदेशी तकनीक से रंगीन फिल्म निर्माण के ऐतिहासिक प्रयासों को मिली पहचान, मुंबई में बिलीव इट ऑर नॉट का भव्य प्रीमियर

भोपाल | मुंबई। भारतीय सिनेमा के तकनीकी इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय को सामने लाने वाली वृत्तचित्र फिल्म ‘बिलीव इट ऑर नॉट’ का मुंबई स्थित आईएमपीपीए प्रीव्यू थिएटर में भव्य और सफल प्रीमियर आयोजित किया गया। यह फिल्म डॉ. पी.एस. श्रीवास्तव द्वारा निर्मित है और उनके पिता स्वामी शरण श्रीवास्तव के उन ऐतिहासिक आविष्कारों और तकनीकी नवाचारों पर आधारित है, जिनके माध्यम से भारत में स्वदेशी तकनीक से रंगीन फिल्म निर्माण के प्रयास किए गए। प्रीमियर कार्यक्रम में फिल्म जगत, बौद्धिक वर्ग और सामाजिक क्षेत्र की अनेक प्रतिष्ठित हस्तियां उपस्थित रहीं, जिन्होंने फिल्म की विषयवस्तु और शोध को सराहा।
डॉ. आर. एच. लता ने किया ऐतिहासिक योगदान का उल्लेख
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि इंडियन योगिनी एसोसिएशन की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. आर. एच. लता रहीं। उनके साथ भरत कान्हेरे, चैतन्य अदीब, आर्यन वैद्य और श्री सिन्हा विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन रहे। अपने संबोधन में डॉ. आर. एच. लता ने कहा कि ‘बिलीव इट ऑर नॉट’ पूरी तरह वास्तविक, प्रामाणिक और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित वृत्तचित्र है। यह फिल्म पी.एस. श्रीवास्तव के पिता स्वामी शरण श्रीवास्तव द्वारा किए गए उन महत्वपूर्ण आविष्कारों को सामने लाती है, जिनके माध्यम से भारत में पहली बार स्वदेशी तकनीक के सहारे रंगीन फिल्म निर्माण का सपना साकार करने का प्रयास किया गया।
विदेशी तकनीक पर निर्भरता के दौर में स्वदेशी नवाचार
डॉ. लता ने कहा कि जिस दौर में रंगीन फिल्मों के लिए भारत को विदेशी तकनीक और एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता था, उस समय स्वामी शरण श्रीवास्तव ने स्वदेशी तकनीकी समाधान विकसित करने का साहसिक प्रयास किया। उन्होंने रंगीन फिल्म निर्माण से जुड़ी तकनीकों पर गहन शोध किया और उसे न केवल विकसित किया, बल्कि भारत और विदेशों में पेटेंट भी कराया। उन्होंने बताया कि यह तकनीक दिल्ली, कलकत्ता और ब्रिटेन जैसे महत्वपूर्ण केंद्रों में अलग-अलग समय पर पेटेंट कराई गई, जो इस खोज की वैश्विक स्वीकार्यता और तकनीकी महत्व को दर्शाती है।
फिल्म शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल हो यह वृत्तचित्र
डॉ. आर. एच. लता ने इस वृत्तचित्र को भारतीय फिल्म तकनीक के इतिहास में मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इसे फिल्म शिक्षा और पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां भारतीय सिनेमा के तकनीकी योगदान और स्वदेशी नवाचारों से परिचित हो सकें।कार्यक्रम के समापन पर उपस्थित अतिथियों ने फिल्म की विषयवस्तु, शोध, ऐतिहासिक दस्तावेज़ीकरण और प्रस्तुति की प्रशंसा करते हुए इसे भारतीय सिनेमा के तकनीकी इतिहास को सहेजने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज बताया।



