
अफ्रीका के इतिहास में पैट्रिस लुमुम्बा का नाम औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध साहसिक संघर्ष का प्रतीक है। वे 1960 में स्वतंत्र हुए कांगो (डीआर कांगो) के पहले लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी राष्ट्रवादी और साम्राज्यवाद-विरोधी नीतियाँ पश्चिमी शक्तियों को स्वीकार्य नहीं थीं।
स्वतंत्रता के बाद संकट
30 जून 1960 को कांगो की आज़ादी के तुरंत बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। काटांगा प्रांत में बेल्जियम समर्थित अलगाववाद उभरा। लुमुम्बा ने खुले मंच से बेल्जियम की औपनिवेशिक नीतियों की निंदा की, जिससे ब्रसेल्स और उसके सहयोगी नाराज़ हो गए।
पश्चिमी शक्तियों की भूमिका
बेल्जियम: अपने आर्थिक हितों (खनिज संसाधन) और प्रभाव को बचाने के लिए लुमुम्बा को हटाने की कोशिशें तेज़ कीं।
अमेरिका (CIA) और ब्रिटेन (MI6): शीत युद्ध के दौर में लुमुम्बा को “सोवियत समर्थक” बताकर उन्हें सत्ता से दूर करने की रणनीति बनाई।
आंतरिक तख्तापलट और गिरफ्तारी
सितंबर 1960 में सेना प्रमुख जोसेफ मोबुतु ने पश्चिमी समर्थन से तख्तापलट किया। लुमुम्बा को पद से हटाया गया, घर में नज़रबंद किया गया और बाद में बेल्जियम समर्थित बलों की मदद से गिरफ्तार कर लिया गया। संयुक्त राष्ट्र की मौजूदगी के बावजूद उन्हें सुरक्षा नहीं मिली।
अंत और ऐतिहासिक सच्चाई
जनवरी 1961 में लुमुम्बा को काटांगा ले जाकर यातना के बाद हत्या कर दी गई। वर्षों बाद दस्तावेज़ों और जांचों से यह स्पष्ट हुआ कि इस पूरे षड्यंत्र में बेल्जियम की सीधी भूमिका थी, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों ने राजनीतिक समर्थन और मौन सहमति दी।
विरासत
पैट्रिस लुमुम्बा आज भी अफ्रीकी आत्मनिर्णय, संप्रभुता और औपनिवेशिक हस्तक्षेप के विरोध के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी हत्या ने यह उजागर किया कि शीत युद्ध की राजनीति में किस तरह नवस्वतंत्र देशों के लोकतांत्रिक नेताओं को निशाना बनाया गया।





