
यरुशलम। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईसाइयों की घटती जनसंख्या को लेकर फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority) पर सीधा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में ईसाई समुदाय लगातार सिमट रहा है और इसके लिए वहां की प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार है। नेतन्याहू का यह बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर एक नई बहस छेड़ रहा है।
बेथलहम का उदाहरण देकर जताई चिंता
नेतन्याहू ने ईसाइयों के लिए पवित्र स्थल बेथलहम का हवाला देते हुए कहा ki यहाँ तक कि यीशु मसीह की जन्मभूमि बेथलहम में भी, जब करीब तीस साल पहले यह हमारे नियंत्रण में था, तब वहाँ की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी ईसाई थी। हमने इसे फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को सौंप दिया और अंदाज़ा लगाइए क्या हुआईसाई आबादी में भारी गिरावट आई और अब यह 20 प्रतिशत से भी कम रह गई है। उनका कहना है कि यह आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि फ़िलिस्तीनी प्रशासन ईसाई अल्पसंख्यकों को सुरक्षित और समान माहौल देने में विफल रहा है।
धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल
नेतन्याहू ने दावा किया कि इज़राइल में सभी धर्मों यहूदी, ईसाई और मुस्लिम को समान अधिकार और सुरक्षा प्राप्त है, जबकि फ़िलिस्तीनी शासित क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को दबाव और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इज़राइल के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में ईसाई आबादी बढ़ी है, जो धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण है।
फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण पर अप्रत्यक्ष हमला
इस बयान को फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण की नीतियों और शासन प्रणाली पर कड़ा प्रहार माना जा रहा है। नेतन्याहू के अनुसार, ईसाइयों का पलायन केवल आर्थिक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दबाव के कारण भी हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की संभावना
नेतन्याहू का यह बयान ऐसे समय आया है जब इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष पहले से ही वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बयान से पश्चिमी देशों, खासकर ईसाई बहुल राष्ट्रों में नई राजनीतिक और कूटनीतिक प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है। यह मुद्दा अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और अल्पसंख्यक सुरक्षा से भी जुड़ गया है, जिस पर आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय बहस और तेज होने की संभावना है।



