काठमांडू। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट जितनी भव्य है, उतनी ही खतरनाक भी। अनुमान है कि यहां अब भी 200 से अधिक पर्वतारोहियों के शव पड़े हुए हैं, जो वर्षों से बर्फ में दबे या खुले रूप में वहीं मौजूद हैं। एवरेस्ट पर मौत का कारण अक्सर तेज़ हवाएं, अत्यधिक ठंड, ऑक्सीजन की कमी और अचानक आने वाले हिमस्खलन होते हैं। एक बार जब कोई पर्वतारोही डेथ ज़ोन यानी 8,000 मीटर से ऊप में फंस जाता है, तो बचाव अभियान लगभग असंभव हो जाता है।
हाल ही में नेपाल सरकार ने शेरपाओं की विशेष टीम के साथ मिलकर कचरा और शव हटाने का अभियान चलाया है। इस दौरान कई शवों और टनों कचरे को नीचे लाया गया है। यह कार्य न केवल पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्वतारोहण मार्ग को सुरक्षित बनाने के लिए भी ज़रूरी है।
लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा करना बेहद कठिन और जोखिम भरा है। 8,000 मीटर की ऊंचाई पर तापमान –40°C तक गिर जाता है।ऑक्सीजन का स्तर बेहद कम होने के कारण किसी भी रेस्क्यू ऑपरेशन में शेरपाओं की जान पर भी बन आती है। कई शव ग्लेशियर में जम चुके हैं, जिन्हें निकालने में घंटों नहीं, कई दिन लग जाते हैं। हेलिकॉप्टर उस ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम नहीं होते, इसलिए पूरा काम मानव-शक्ति पर निर्भर रहता है।
फिर भी नेपाल सरकार और स्थानीय शेरपा समुदाय इस कठिन मिशन को लगातार अंजाम दे रहे हैं, ताकि एवरेस्ट को साफ, सुरक्षित और आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जा सके।
माउंट एवरेस्ट पर 200 से अधिक शव, ऊंचाई पर रेस्क्यू क्यों है इतना मुश्किल?
नेपाल सरकार का बड़ा अभियान जारी
