नई दिल्ली। भारत को फ्रांस से मिले राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर एक बड़ा तकनीकी विवाद सामने आया है। फ्रांस ने भारत को राफेल विमानों का सोर्स कोड देने से इनकार कर दिया है, जिससे भारतीय वायुसेना के लिए इन विमानों में अन्य उन्नत हथियार प्रणालियों, जैसे रूस से प्राप्त S-400 मिसाइल सिस्टम, को एकीकृत करना संभव नहीं हो पाएगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, सोर्स कोड के बिना भारत किसी भी बाहरी हथियार प्रणाली को राफेल में जोड़ने में सक्षम नहीं होगा, और इस वजह से भारतीय वायुसेना को उन्हीं हथियार विकल्पों तक सीमित रहना पड़ेगा जो फ्रांस द्वारा पहले से तय किए गए हैं। इसका सीधा असर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और दीर्घकालिक रक्षा क्षमताओं पर पड़ सकता है।
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि जब देशहित की जगह रणनीतिक साझेदारों के हितों को प्राथमिकता दी जाती है, तो ऐसी सीमाएं सामने आती हैं। भारत जैसे उभरते सैन्य राष्ट्र के लिए यह स्थिति तकनीकी आत्मनिर्भरता के महत्व को और अधिक रेखांकित करती है।
इस पूरे विवाद से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या भारत को अपने रक्षा सौदों में अधिक पारदर्शिता और तकनीकी नियंत्रण की शर्तें सुनिश्चित करनी चाहिए? साथ ही यह घटना ‘मेक इन इंडिया डिफेंस’ नीति को और मजबूती देने की आवश्यकता की ओर भी इशारा करती है।
राफेल डील पर विवाद: फ्रांस ने भारत को नहीं दिया सोर्स कोड, S-400 मिसाइल इंटीग्रेशन असंभव
