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बढ़ाई अमेरिका की टेंशन

अमेरिका ने वियतनाम की जंग में लाखों लोगों की चढ़ा दी थी बली
नई दिल्ली । द्वितीय विश्वयुद्ध से फ्रांस तकरीबन दिवालिया हो गया था और इंडोचाइना क्षेत्र में अपने उपनिवेश को बचा नहीं सका था। 1954 के जिनेवा सम्मेलन के साथ फ्रांसीसी उपनिवेश रहे वियतनाम को आजादी मिली। आजादी से पहले वियतनाम को दो हिस्सों में बांटा गया था। उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम। यहीं से अमेरिका की वियतनाम युद्ध में फंसने की शुरूआत हुई। कम्युनिस्टों के संगठन वियत मिन्ह ने उत्तरी वियतनाम पर नियंत्रण कर लिया, जब अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम के लिए वित्तीय और सैन्य मदद देनी शुरू की। पूरा वियतनाम और आसपास के देश साम्यवादी न हो जाएं इसके डर ने संघर्ष को जारी रखा और इस डर से अमेरिका एक ऐसे युद्ध में फंस गया जो एक दशक तक चला और लाखों लोग मारे गए।
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के वियतनाम दौरे के बाद वियतनाम की जंग की कहानियां सामने आई और यह अटकलें लगने लगीं कि पुतिन की यह पहल एक और शीतयुद्ध की शुरुआत तो नहीं है। वियतनाम की उस खौफनाक जंग जिसे जीतने के लिए अमेरिका सबकुछ हार गया था। वियतनाम युद्ध एक नवंबर 1955 से 30 अप्रैल 1975 तक चला था। इस जंग का समापन तब हुआ, जब अमेरिका समर्थित दक्षिण वियतनाम की राजधानी साइगॉन पर उत्तरी वियतनाम के गुरिल्ला लड़ाकों के संगठन वियत कॉन ने कब्जा कर लिया।
असल में वियतनाम जंग वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की बीच चली लंबी लड़ाई थी। इसे इंडोचीन युद्धों में से दूसरा और शीत युद्ध का एक प्रमुख संघर्ष माना जाता है। आधिकारिक तौर पर यह युद्ध उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम के बीच लड़ा गया। वियतनाम युद्ध तो उत्तर और दक्षिण वियतनाम के बीच लड़ा गया था, जिसमें उत्तर को सोवियत संघ, चीन और अन्य कम्युनिस्ट देशों का समर्थन मिला हुआ था। वहीं, दक्षिण वियतनाम को अमेरिका और कम्युनिस्ट विरोधी सहयोगियों का समर्थन मिला था। यह लड़ाई दरअसल अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक छद्म युद्ध के रूप में लड़ी गई थी। 20 साल तक चली यह लड़ाई 1975 में लाओस, कंबोडिया और वियतनाम के बनने के साथ ही खत्म हो गई। यह एक तरह से सोवियत रूस की जीत थी, क्योंकि तीनों देशों में कम्युनिस्ट शासन था।
अगस्त 1964 की शुरुआत में जब उत्तरी वियतनाम के गुरिल्ला युद्ध में माहिर वियत कॉन्ग यानी वियतनामी लड़ाकों ने उत्तरी वियतनाम के तट के पास टोंकिन की खाड़ी में अमेरिकी जंगी जहाजों पर हमला किया तो अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉनसन ने उत्तरी वियतनामी नौसैनिक अड्डों पर जवाबी हमला करवाया। फरवरी 1965 में गुरिल्ला लड़ाकों को मारने के लिए अमेरिका ने ऑपरेशन रोलिंग थंडर चलाया, जिसमें वियतनामी गुरिल्लाओं पर जमकर बमबारी की गई। 1967 के आखिर तक करीब 500 अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने की खबरें आईं। अमेरिकी सरकार युद्ध पर पानी की तरह पैसे बहा रही थी। जॉनसन ने जो ग्रेट सोसाइटी प्रोग्राम चलाए थे, उन्हें पैसे मिलने बंद हो गए। महंगाई की रफ्तार बढ़ रही थी। ऐसे में 1965 से यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ छात्रों का एंटी वियतनाम आंदोलन और बढ़ता गया। पूरे अमेरिका में छात्र सड़कों पर उतर आए थे। हर कोई वियतनाम जंग का जल्द समाधान चाहता था। वही, रूस को इस जंग में कूटनीतिक मोर्चे पर काफी बढ़त मिली, जिसने उत्तरी वियतनाम का समर्थन किया था।
अमेरिका ने 20 मिलियन अमेरिकी गैलन से ज्यादा जहरीले केमिकल जैसे हर्बीसाइड्स का छिड़काव करके दक्षिण वियतनाम के 20फीसदी जंगल और 20 से 50फीसदी मैंग्रोव जंगलों को खत्म कर दिया। इससे बड़े पैमाने पर पारिस्थितिकी विनाश हुआ। अमेरिका ने कई खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल किया था। 2008 में अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि युद्ध पर कुल 686 अरब डॉलर खर्च हुआ, जो आज के वक़्त 950 अरब डॉलर से ज्यादा है। उत्तरी वियतनाम के करिश्माई नेता हो ची मिन्ह ने अपने भाषणों से वियतनामी लोगों में जान फूंक दी। उन्होंने कहा था-सभी मनुष्य समान पैदा होते हैं। निर्माता ने हमें अपरिवर्तनीय अधिकार दिए हैं-जीवन, स्वतंत्रता और खुशी! मिन्ह ने उत्तरी वियतनाम और दक्षिणी वियतनाम को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। उन्हीं की अगुवाई में वियतनाम जंग अमेरिका कभी जीत नहीं पाया।

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