बड़े कदम तो उठाने ही होंगे

लेखक: संजय सक्सेना, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल

पहले अहमदाबाद में बड़ी विमान दुर्घटना और फिर उत्तराखंड में विमान दुर्घटना, भले ही दोनों में काफी अंतर हो, लेकिन दोनों दुर्घटनाओं ने हवाई सफर करने वालों  को बड़ा झटका तो दे ही दिया है। बड़ा सवाल इन दुर्घटनाओं की भरपाई का नहीं है, इनके पीछे के कारणों का है। भारत लगातार हवाई क्षेत्र में भी विकास कर रहा है, ऐसे में और ज्यादा सावधानी की जरूरत है।

उत्तराखंड के चार धाम में हुए हेलीकाप्टर हादसे की बात करें तो ये हेलिकॉप्टर हादसा नियमों की अनदेखी, लापरवाही और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की होड़ का नतीजा ही बताया जा रहा है। केवल मई-जून में ही हुई पांच दुर्घटनाएं और उनमें 13 लोगों की मौत बताती हैं कि पिछली घटनाओं से सबक नहीं लिया गया और न ही सरकारी कार्रवाई का हेलिकॉप्टर ऑपरेटरों पर असर हो रहा है।
हालिया क्रैश केदारनाथ से लौटते समय गौरीकुंड के पास हुआ। कारण खराब मौसम बताया जा रहा । एस ओ पी का पालन नहीं करने पर संबंधित कंपनी आर्यन एविएशन के अफसरों पर प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। लेकिन, इससे यह सवाल भी उठता है कि जब मौसम अनुकूल नहीं था, तो उड़ान हुई कैसे? क्या हेलिकॉप्टर सर्विस पर निगरानी का कोई सिस्टम नहीं है ? कुछ दिनों पहले ही एक कंपनी के दो पायलटों पर इसी मामले में एक्शन लिया गया था। इसके बावजूद एक अन्य कंपनी फिर वही गलती दोहराती है।
देखा जाये तो उत्तराखंड में श्रद्धालुओं की संख्या बेहिसाब ढंग से बढ़ी है और इसी के साथ हेलिकॉप्टर सेवा भी। लेकिन, इसमें सुरक्षा मानकों की अनदेखी के आरोप भी खूब लगे हैं। चूंकि यात्रा सीजन सीमित होता है, ऐसे में ज्यादातर कंपनियों का जोर अधिक से अधिक उड़ान भरने और मुनाफा कमाने पर होता है। इसी वजह से कभी उत्तरकाशी जैसे हादसे होते हैं और कभी सड़क पर हार्ड लैंडिंग की तस्वीरें आती हैं। इसका एक पहलू पर्यावरण पर पड़ने वाला नकारात्मक असर भी है।
एविएशन विशेषज्ञ मानते हैँ कि चार धाम रूट, खासकर केदारनाथ रूट एक पायलट के लिहाज से सबसे चुनौतीपूर्ण है। यहां उड़ानें तो बढ़ी हैं, लेकिन रडार या एयर ट्रैफिक कंट्रोल जैसा जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। पायलटों को केवल अपनी आंख पर भरोसा करके आगे बढ़ना होता है, लेकिन उस ऊंचाई पर, जहां मौसम अचानक करवट ले लेता है, यह बहुत जोखिम भरा है। ऊपर से कंपनियों का लालच इस जोखिम को और बढ़ा देता है।

कुछ दिनों पहले ही डी जी सी ए ने चार धाम कॉरिडोर में उड़ानों की संख्या आधी कर दी और उत्तराखंड सिविल एविएशन डिवेलपमेंट अथॉरिटी के कंट्रोल रूम में अपने ऑफिसर भी नियुक्त किए हैं। लेकिन इसके साथ हेलिकॉप्टर सर्विस देने वाली कंपनियों पर अंकुश की भी जरूरत है। मानकों को और कड़ा किया जाना चाहिए। देश के किसी और हिस्से की तुलना में हिमालय में उड़ान भरना अतिरिक्त सावधानी की मांग करता है।
जहाँ तक अहमदाबाद में हुए भीषण एयर इंडिया विमान हादसे की बात है, इस घटना ने आम देशवासियों की संवेदनाओं को तो झकझोरा ही है, देश में एविएशन सेफ्टी से जुड़ी पूरी व्यवस्था को ढंग से खंगालने और उसकी खामियों को दूर करने की आवश्यकता भी रेखांकित कर दी है।
इस जरूरत को महसूस करते हुए ही सरकार ने हादसे के दो दिन बाद केंद्रीय गृह सचिव की अगुआई में एक कमिटी बनाई है, जो सुरक्षा से जुड़े पहलुओं की बारीकी से पड़ताल करेगी। ध्यान रहे, एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट्स इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो पहले ही इस हादसे की जांच शुरू कर चुका है। अमेरिकी नैशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड भी इस जांच में हिस्सेदारी कर रहा है क्योंकि दुर्घटनाग्रस्ट विमान अमेरिकी कंपनी बोइंग ने बनाया था। एक ब्रिटिश टीम भी इस जांच में सहयोग कर रही है। इस सबके बावजूद, इनसे अलग केंद्रीय गृह सचिव के नेतृत्व में यह विशेष जांच टीम गठित की गई है। ओस जांच की सही और पूरी रिपोर्ट सार्वजानिक भी होनी चाहिएबर्बिंसके आधार पर एक्शन भी होना चाहिए। जब तक सख़्ती नहीं होगी, दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं रुकेगी. 
एक तरफ देश का एविएशन मार्केट यात्रियों की संख्या के लिहाज से दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मार्केट बन चुका है। एयर कार्गो के लिहाज से यह छठा सबसे बड़ा मार्केट है। लेकिन कहीं ना कहीं ऐसा लगता है कि हमारी तैयारी उस हिसाब से नहीं है। हाल के वर्षों में हुए इन्फ्रा ग्रोथ और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयासों को ध्यान में रखें तो इस क्षेत्र का आने वाले वर्षों में और तेजी से विस्तार होना तय लगता है। इसे ध्यान में रखते हुए उस हिसाब से नियमों में संशोधन या बदलाव कि जरूरत हो तो कर सकते हैँ। हमें सुविधाओं के साथ ही सुरक्षा पर भी ख़ास ध्यान देना होगा।

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