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शशि थरूर ने राज्यसभा में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने का बिल पेश किया, राष्ट्रीय बहस तेज

नई दिल्ली। राज्यसभा में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) को अपराध घोषित करने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। यह कदम देशभर में महिलाओं की सुरक्षा, शारीरिक स्वायत्तता और वैवाहिक अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म देता है। सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है, न्याय कैसे सुनिश्चित हो, बिना हर वैवाहिक विवाद को क्रिमिनल केस में बदले?

भारत में वैवाहिक दुष्कर्म की वर्तमान कानूनी स्थिति

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में अब भी विवाह के भीतर पति द्वारा की गई जबरदस्ती को अपराध नहीं माना गया है। यह एक्सेप्शन क्लॉज लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। दुनिया के कई देशों में Marital Rape को अपराध घोषित किया जा चुका है, लेकिन भारत अभी सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे और कानूनी सुरक्षा के संतुलन के चौराहे पर खड़ा है।

बिल का उद्देश्य: स्थायी सहमति नहीं, पत्नी की स्वायत्तता सर्वोपरि

थरूर का स्पष्ट तर्क है कि शादी किसी भी तरह की स्थायी सहमति (Permanent Consent) नहीं हो सकती। पत्नी की देह पर उसका संपूर्ण अधिकार है और किसी भी प्रकार की जबरदस्ती, हिंसा या धमकी को कानून से बाहर नहीं रखा जा सकता। यह कदम महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

चुनौती: क्रिमिनलाइज़ेशन बनाम दुरुपयोग

विशेषज्ञों के अनुसार मुख्य चिंता यह है कि कहीं हर वैवाहिक विवाद को बलात्कार के केस में न बदला जाने लगे।

प्रमुख चुनौतियाँ

झूठे मामलों का खतरा: तलाक, संपत्ति या घरेलू विवादों में IPC 498A की तरह दुरुपयोग की आशंका।
साबित करना मुश्किल: निजी स्थान में हुए अपराध में सबूत और गवाह मिलना कठिन।
वैवाहिक संस्था पर असर: अत्यधिक क्रिमिनलाइज़ेशन सुलह की गुंजाइश कम कर सकता है।

संभावित समाधान: संतुलित और सुरक्षित मॉडल की जरूरत

थरूर के बिल पर चर्चा के बीच विशेषज्ञ कुछ प्रमुख सुरक्षा उपायों पर जोर दे रहे हैं, अपराध की स्पष्ट और सीमित परिभाषा  केवल हिंसा, चोट, धमकी या स्पष्ट असहमति वाले मामले शामिल हों। FIR से पहले निष्पक्ष व विशेषज्ञ जांच महिला अधिकारी, मेडिकल टीम और काउंसलर की भूमिका आवश्यक। झूठे आरोप पर संतुलित दंड ताकि कानून का दुरुपयोग रोका जा सके। Family Protection Courts जहां अपराध और सुलह के विकल्प को न्यायिक निगरानी मिले। काउंसलिंग, कानूनी सहायता और सुरक्षित आश्रय  विवाह की कई समस्याएँ संवाद की कमी से भी उत्पन्न होती हैं।

निष्कर्ष

वैवाहिक दुष्कर्म पर कानून बनाना महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए जरूरी है, लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि हर वैवाहिक मतभेद को अपराध घोषित न किया जाए। भारत को एक संतुलित, पारदर्शी और व्यवहारिक मॉडल अपनाना होगा, जो असली पीड़िता को न्याय दे और दुरुपयोग पर भी नियंत्रण रखे।

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