हर कानून का उद्देश्य न्याय होता है, लेकिन जब वही कानून किसी के हाथों में भ्रष्टाचार और बदले का औज़ार बन जाए, तो समाज को सोचना पड़ता है — क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं? SC/ST एक्ट, जो दलित वर्गों को संरक्षण देने के लिए बनाया गया था, आज कई मामलों में ईमानदार अधिकारियों पर दबाव और उत्पीड़न का हथियार बनता जा रहा है। ASI संदीप लाठर की आत्महत्या इस कड़वी सच्चाई की गवाही दे रही है।
रोहतक के ASI संदीप लाठर की मौत ने पूरे पुलिस तंत्र और न्याय व्यवस्था को झकझोर दिया है। अपने तीन पन्नों के सुसाइड नोट में उन्होंने साफ लिखा कि उन्हें SC/ST एक्ट का डर दिखाकर दबाया गया, जबकि असली अपराधी वे नहीं, बल्कि पूरन कुमार नामक IPS अधिकारी थे — जिन्होंने रिश्वतखोरी, धमकी और सत्ता के दुरुपयोग का पूरा जाल बिछा रखा था।
पूरन कुमार ने खुद को दलित उत्पीड़न का शिकार बताया, लेकिन जांच में वे भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोपों में फंसे पाए गए। उनके साले का संबंध एक MLA से, पत्नी का IAS अधिकारी होना, और परिवार के सदस्यों का SC/ST आयोग से जुड़ा होना, इस नेटवर्क की ताकत को और भी भयावह बनाता है।
संदीप लाठर ने अपने नोट में लिखा कि पूरन ने SC/ST एक्ट की धमकी देकर सबको चुप कराया। कोई जातिगत भेदभाव नहीं हुआ, सिर्फ भ्रष्टाचार उजागर हो रहा था। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरन ने 50 करोड़ तक के अवैध सौदे, महिलाओं का यौन उत्पीड़न, और ईमानदार अफसरों को हटाने के लिए राजनीतिक दबाव बनाए रखे। जब लाठर ने इसके सबूत जुटाए, तब जाति के नाम पर प्रताड़ना का खेल शुरू हुआ, जिससे तंग आकर उन्हें अपनी जान देनी पड़ी।
सवाल वही है – न्याय या राजनीति?
क्या SC/ST एक्ट अब भी उतना ही न्यायकारी है, जितना इसके बनते वक्त था? या यह अब भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के लिए सुरक्षा कवच बन गया है?
दलित अधिकारों की रक्षा निस्संदेह आवश्यक है, लेकिन जब कानून का इस्तेमाल सच बोलने वालों को चुप कराने में हो, तो उसका उद्देश्य खो जाता है।
ASI संदीप लाठर की मौत सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि कानूनी दुरुपयोग और जातिगत राजनीति के खतरनाक गठजोड़ की परतें खोलती है। अब वक्त है कि समाज और शासन दोनों इस पर विचार करें। क्या SC/ST एक्ट न्याय का हथियार है, या भ्रष्टाचार का कवच बन चुका है?
SC/ST एक्ट – न्याय का हथियार या भ्रष्टाचार का कवच? ईमानदार ASI संदीप लाठर की मौत से उठे गंभीर सवाल
