मंडी में धान नहीं, किसानों की उम्मीदें सूख रही हैं!
गोहद की मंडियों में अव्यवस्था, व्यापारी गायब और प्रशासन मौन

संवाददाता : पुखराज भटेले, गोहद जिला भिंड
गोहद (भिंड)। कभी धान का कटोरा कहे जाने वाले गोहद की मंडियों में इन दिनों किसानों का सब्र जवाब देने लगा है। खेतों में मेहनत से उगाई गई धान की फसल जब मंडी पहुंची, तो किसानों ने राहत की उम्मीद की थी, लेकिन अब वे पाँच-पाँच दिन तक अपनी ट्रॉलियाँ खड़ी करके धैर्य परीक्षा समिति का हिस्सा बन चुके हैं। गोहद की प्रमुख मंडियों में इन दिनों हाल यह है कि सैकड़ों ट्रॉलियाँ धान से भरी खड़ी हैं, लेकिन खरीद का नामोनिशान नहीं। किसान दिन-रात मंडी में डेरा डाले हैं, बरसात का डर, खाने की चिंता और घटते डीज़ल का खर्च सब कुछ झेलते हुए।
उधर व्यापारी मंडियों में नजर नहीं आते, वे अपने मिलों में बैठकर धान की खरीद कर रहे हैं। इससे न केवल सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि मंडी व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी सवाल उठ रहे हैं। छोटे व्यापारी दो-चार ट्रॉलियों में ही थक जाते हैं, जबकि बड़े मिल-मर्चेंट खुलेआम नियमों को धता बता रहे हैं। सवाल बड़ा है जब सरकारी नीति कहती है कि धान की खरीद मंडी परिसर में ही होगी, तो ये मिल-मर्चेंट मंडी से बाहर सौदे क्यों कर रहे हैं? जवाब प्रशासन के पास नहीं। रिपोर्टों में सब कुछ सामान्य दिखाया जा रहा है, जबकि ज़मीन पर किसान परेशान हैं।
किसानों की माँगें स्पष्ट हैं:
मंडियों का तत्काल सर्वे कर वास्तविक स्थिति दर्ज की जाए।
मंडी में खरीद अनिवार्य की जाए, मिलों पर खरीद पर रोक लगे।
प्रति हेक्टेयर पारदर्शी मुआवजा और त्वरित भुगतान सुनिश्चित हो।
निर्णय में देरी न हो, आदेश तुरंत जारी किए जाएँ।
किसानों का कहना है कि अगर हमारी फसलें डूब सकती हैं, तो कुर्सियाँ भी हिल सकती हैं।
गोहद की यह आवाज अब केवल मंडी की नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के हर किसान की पुकार बन चुकी है।




