चेन्नई। कोयंबटूर 1998 सीरियल ब्लास्ट मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहे दोषियों के परिजन अब उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। परिवारों ने तमिलनाडु सरकार से अपील की है कि जिन कैदियों ने 25 वर्ष से अधिक की सज़ा पूरी कर ली है, उन्हें “मानवीय आधार” पर रिहा किया जाए। यह मामला एक बार फिर राज्य की राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक बहस के केंद्र में आ गया है।
25 साल की सज़ा पूरी करने का हवाला, परिवारों की भावनात्मक अपील
परिजनों का कहना है कि दोषी अब उम्रदराज हो चुके हैं और जेल में लम्बा समय व्यतीत कर चुके हैं। उनका दावा है कि अच्छी आचरण रिपोर्ट और स्वास्थ्य कारणों को देखते हुए सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। परिवारों ने कहा कि “इतना लंबा समय जेल में बिताने के बाद समाज में वापसी का अवसर मिलना चाहिए।”
कोयंबटूर ब्लास्ट केस की पृष्ठभूमि
14 फरवरी 1998 को हुए कोयंबटूर ब्लास्ट ने तमिलनाडु और पूरे देश को हिला दिया था। इस हमले में कई लोगों की मौत हुई थी और बड़ी संख्या में नागरिक घायल हुए थे। इस मामले में दर्जनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद सहित कठोर सज़ाएँ दी गई थीं। यह घटना देश की सबसे गंभीर आतंकी घटनाओं में शामिल मानी जाती है।
सरकार और कानूनी विशेषज्ञ सतर्क
हालांकि परिवारों की मांग सामने आने के बाद राज्य सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि आतंकवादी गतिविधियों में दोषी पाए गए व्यक्तियों की रिहाई बेहद संवेदनशील विषय है, जिसमें सुरक्षा एजेंसियों, पीड़ित पक्ष, और अदालतों की राय महत्वपूर्ण होती है। विशेषज्ञों के अनुसार केवल 25 साल की सज़ा पूरी होना रिहाई का स्वतः आधार नहीं बनता। आतंकी मामलों में कानून और सुरक्षा मानकों का पालन सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहती है।
मामले पर बढ़ी राजनीतिक और सामाजिक चर्चा
तमिलनाडु में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज है। समर्थक इसे मानवीय दृष्टिकोण से देखते हैं, जबकि विरोधियों का कहना है कि गंभीर आतंकी अपराधों में कोई ढील नहीं दी जानी चाहिए। फिलहाल राज्य सरकार द्वारा आगे उठाए जाने वाले कदमों पर सभी की नजरें टिकी हैं।
