भोपाल, । मध्यप्रदेश में चर्चित 1000 करोड़ रुपये की कथित रिश्वत कांड में मंत्री को क्लीन चिट दिए जाने के बाद बवाल खड़ा हो गया है। वहीं दूसरी ओर, करीब 150 जूनियर इंजीनियरों (JE), सब इंजीनियरों और फील्ड स्तर के तकनीकी कर्मचारियों को नोटिस भेजने की प्रक्रिया शुरू होने से विभाग में जबरदस्त नाराज़गी फैली हुई है।
निचले स्तर के इंजीनियरों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर कार्रवाई सिर्फ उन्हीं पर केंद्रित रही तो वे सामूहिक रूप से काम बंद कर देंगे। इंजीनियरों का कहना है कि भ्रष्टाचार की वास्तविक जड़ पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही, बल्कि “बलि का बकरा” उन्हें बनाया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
कथित तौर पर 1000 करोड़ रुपये की रिश्वत विभिन्न निर्माण कार्यों की मंजूरी, टेंडर प्रक्रिया और भुगतान स्वीकृति के बदले मांगी गई थी। जांच की शुरुआत में मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। हाल ही में आंतरिक जांच रिपोर्ट में मंत्री को क्लीन चिट दे दी गई, जबकि निचले स्तर के इंजीनियरों को नोटिस देकर दोषी ठहराया जा रहा है।
नाराज इंजीनियरों की खुली चेतावनी
मध्यप्रदेश इंजीनियर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता ने कहा कि “हम तकनीकी आदेशों का पालन करते हैं, नीति निर्माण या टेंडर फाइनलाइजिंग का अधिकार हमारे पास नहीं होता। अगर सिर्फ जूनियर इंजीनियरों पर ही कार्यवाही की जाएगी और राजनीतिक संरक्षण पाए लोग बचते रहेंगे तो हम कार्य बहिष्कार के लिए बाध्य होंगे।”
इंजीनियरों ने यह भी आरोप लगाया कि जांच पूरी तरह पक्षपातपूर्ण है और इसका उद्देश्य “ऊपर के दोषियों को बचाना और नीचे के कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाना” है।
काम बंद हुआ तो प्रभावित होंगे ये विभाग:
लोक निर्माण विभाग (PWD)
ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (RES)
नगरीय विकास प्राधिकरण
जल संसाधन विभाग
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स और PMGSY जैसी योजनाएं।
यदि इंजीनियरों ने काम बंद किया, तो सड़क निर्माण, सिंचाई परियोजनाएं, जलापूर्ति योजनाएं और नगरीय अधोसंरचना कार्य ठप हो सकते हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज़
विपक्ष ने इसे सरकार की “सेलेक्टिव इनक्वायरी” नीति बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि “मंत्री को राजनीतिक दबाव में बचाया गया है, जबकि ईमानदार जूनियर इंजीनियरों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।”
इंजीनियर संघ की मांगें:
1. उच्च स्तरीय न्यायिक जांच होनी चाहिए जिसमें सभी स्तर के अधिकारियों की भूमिका जाँची जाए।
2. जांच की पारदर्शी सार्वजनिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाए।
3. क्लीन चिट पर पुनर्विचार, और सभी के खिलाफ समान मापदंड से कार्यवाही।
4. जब तक यह नहीं होता, इंजीनियर संघ “वर्क टू रूल” और पूर्ण हड़ताल” की रणनीति पर विचार कर रहा है।
निष्कर्ष: यह मामला न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता बल्कि राजनीतिक जवाबदेही की भी बड़ी परीक्षा बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि इंजीनियरों के विरोध और विपक्ष के दबाव के बाद क्या सरकार किसी नये जांच आयोग का गठन करती है या यथास्थिति बनी रहती है।