पिथौरागढ़ में सड़क किनारे बेहोश मिली महिला, साथ खड़ी रही मासूम बच्ची, नशे के सामाजिक प्रभाव पर गंभीर सवाल

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)। गुरुवार को पिथौरागढ़ से सामने आया एक वीडियो केवल एक घटना नहीं, बल्कि समाज के लिए चेतावनी है। सड़क किनारे एक महिला बेहोशी की हालत में पड़ी मिली, जबकि उसके साथ एक छोटी बच्ची मौजूद थी। राहगीरों ने रुककर मदद की और महिला को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां प्रारंभिक जानकारी के अनुसार महिला नशे की हालत में पाई गई।
यह सिर्फ मेडिकल मामला नहीं
घटना के बाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया कि ऐसे मामलों को मेडिकल इमरजेंसी माना जाए या नशे से जुड़ा सामाजिक संकट। हर बार की तरह इस बार भी 108 एंबुलेंस, अस्पताल और आम लोग असमंजस में दिखे मदद तो जरूरी है, लेकिन समस्या की जड़ क्या है?
सबसे बड़ा सवाल: वह बच्ची
इस पूरी घटना का सबसे चिंताजनक पहलू वह मासूम बच्ची है, जिसकी कोई गलती नहीं थी। वह सड़क पर अपनी बेहोश मां के पास खड़ी रही डर, असुरक्षा और सदमे के बीच। इस मानसिक आघात की कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं बनती, लेकिन इसका असर उस बच्चे के जीवन पर लंबे समय तक रह सकता है।
उत्तराखंड में बढ़ती चिंता
उत्तराखंड के कई इलाकों में अब ऐसे दृश्य अपवाद नहीं रह गए हैं। शराब के नशे में लोग सार्वजनिक स्थानों पर अचेत अवस्था में मिल जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से सीमित हैं, वहां नशे से जुड़ी ऐसी स्थितियां हालात को और अधिक खतरनाक बना देती हैं।
शराब का असर सिर्फ पीने वाले तक सीमित नहीं
यह घटना साफ करती है कि शराब का प्रभाव केवल व्यक्ति तक नहीं रुकता यह बच्चों की सुरक्षा को प्रभावित करता है। परिवार की स्थिरता को तोड़ता है और समाज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करता है
यह नैतिकता नहीं, जिम्मेदारी का प्रश्न है
यह बहस पुरुष या महिला की नहीं है।
जब शराब किसी इंसान को इस हद तक पहुंचा दे कि वह अपने ही बच्चे के लिए खतरा बन जाए, तो यह व्यक्तिगत पसंद का नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी का मामला बन जाता है। समाज, प्रशासन और नीति-निर्माताओं को ऐसे मामलों पर केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रोकथाम, पुनर्वास और बच्चों की सुरक्षा के ठोस उपायों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।



