पूर्वांचल के लोगों के साथ भाजपा शासित राज्यों में इस तरह का व्यवहार क्यों? हरियाणा में बलिया के युवक की हत्या पर गहराया सवाल

हरियाणा / बलिया / महाराष्ट्र, ।
देश में क्षेत्रीयता और प्रवासी विरोध की घटनाएं एक बार फिर से राष्ट्रीय बहस का विषय बन गई हैं। हरियाणा में बलिया (उत्तर प्रदेश) के युवक की पीट-पीटकर हत्या ने न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि इसने भाजपा शासित राज्यों में पूर्वांचल के लोगों के प्रति व्यवहार को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा की हैं।

हरियाणा में बलिया के युवक की पीट-पीटकर हत्या

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बलिया जिले का युवक बाग़ी (काल्पनिक नाम) रोज़गार की तलाश में हरियाणा के एक औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत था। लेकिन बीते सप्ताह मामूली विवाद के बाद स्थानीय लोगों ने उसकी पिटाई कर दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।  यह घटना न केवल अमानवीय थी, बल्कि एक प्रवासी श्रमिक के तौर पर उसकी पहचान को लक्ष्य बनाकर हिंसा की गई, ऐसा आरोप परिजनों और स्थानीय लोगों ने लगाया है।

पूर्वांचल के नेताओं की चुप्पी — क्यों नहीं उठ रही आवाज़?

हैरत की बात यह है कि बलिया, गाज़ीपुर, मऊ, और पूर्वांचल के अन्य जिलों से जुड़े भाजपा नेताओं में से किसी ने इस घटना पर एक शब्द नहीं बोला।  क्या पार्टी अनुशासन के नाम पर अपने क्षेत्र के नागरिकों की पीड़ा पर भी चुप रहना अनिवार्य है?  क्या यह दर्शाता है कि पूर्वांचल के नेताओं की प्राथमिकता, जनता नहीं बल्कि सत्ता में अपनी स्थिति बनाए रखना है?

महाराष्ट्र में पूर्वांचली लोगों पर हमले की पृष्ठभूमि

यह पहली बार नहीं है जब भाजपा या अन्य शासित राज्यों में पूर्वांचल के लोगों को निशाना बनाया गया हो। हाल ही में महाराष्ट्र में प्रवासी मजदूरों और टैक्सी चालकों पर हमलों की कई घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग निशाने पर थे। लेकिन इन घटनाओं पर भी कोई ठोस राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं आई, खासकर पूर्वांचल से जुड़े सांसदों या मंत्रियों की ओर से।



पूर्वांचल विरोध या प्रशासनिक विफलता?

पूर्वांचल से लाखों लोग दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और अन्य राज्यों में काम करते हैं। ये देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
लेकिन जब इन पर हमले होते हैं, हत्या होती है या अपमानजनक व्यवहार किया जाता है, और फिर भी कोई राजनीतिक आवाज़ नहीं उठती — तो यह सिर्फ़ प्रशासनिक असफलता नहीं बल्कि सामाजिक व राजनीतिक उदासीनता का संकेत है।

पूर्वांचलियों को चाहिए राजनीतिक जागरूकता और एकता

बलिया, मऊ, गाज़ीपुर, देवरिया, छपरा जैसे जिलों के लोग पूरे भारत में अपनी मेहनत, सादगी और ईमानदारी के लिए पहचाने जाते हैं। लेकिन अब ज़रूरत है कि वे अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछें, सोशल मीडिया और जनमंचों पर अपनी आवाज़ बुलंद करें, और ऐसे मामलों में न्याय की मांग को संगठित करें।

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