
भोपाल/नर्मदा घाटी । नर्मदा नदी के तट पर स्थित भिलाड़िया घाट पर 125 वर्ष पुराने प्राचीन शिव-पार्वती मंदिर को तोड़े जाने के विरोध में जांगड़ा समाज और संत गंगाराम जी भरलाय के शिष्यों व परिजनों में भारी आक्रोश व्याप्त है। यह मंदिर स्वतंत्रता पूर्व काल, वर्ष 1916 में संत गंगाराम जी द्वारा स्थापित किया गया था और तब से यह समाज की श्रद्धा और आस्था का केंद्र रहा है।
मंदिर का विध्वंस और नव निर्माण को लेकर विवाद
शिवपुर निवासी गुलाब और रामविलास सोलंकी द्वारा इस मंदिर को तोड़कर निजी मंदिर निर्माण किए जाने की सूचना से समाज में तीव्र विरोध पैदा हो गया है। आरोप है कि गुलाब मंदिर नाम से निजी स्मृति में बनाए जा रहे नए मंदिर में न तो पूर्व की मूर्तियाँ हैं, न ही संत गंगाराम जी का कोई उल्लेख किया गया है। इसके स्थान पर शिव परिवार की पारंपरिक मूर्तियों को हटाकर अन्य प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं। इतना ही नहीं, पूर्व मंदिर के गर्भगृह को अब नए मंदिर की सीढ़ियों का हिस्सा बना दिया गया है, जो समाज की आस्था और श्रद्धा के साथ गंभीर खिलवाड़ है।
समाज की पांच मुख्य आपत्तियाँ और सवाल
1. समाज की धरोहर को क्या किसी निजी स्मृति में तब्दील किया जा सकता है?
2. क्या मंदिर तोड़ने से पूर्व समाज या संत गंगाराम जी के परिजनों से अनुमति या परामर्श लिया गया?
3. क्या पूर्व संस्थापक का नाम और मंदिर का मूल स्वरूप मिटा देना न्यायसंगत है
4. यदि यह स्थान समाज को समर्पित था, तो अब इसे निजी कैसे घोषित किया जा सकता है?
5. क्या मंदिर की जगह पर मंडलोई का स्वामित्व प्रमाणित है, जबकि यह स्थान 1947 से पूर्व से ही समाज की धरोहर रहा है?
समाज के वरिष्ठों ने जताया विरोध
संत गंगाराम जी के शिष्यों के परिजनों सहित समाज के प्रमुख सदस्यों – हौआ दादा पुत्र रामसिंह बकोरिया, रत्नमंडवी विसोनी, कमलसिंह चौधरी (नर्मदापुरम), शालिकराम चौधरी (बुरहानपुर) आदि ने भिलाड़िया घाट पर जाकर प्रत्यक्ष रूप से नव निर्माणकर्ताओं को समझाने का प्रयास किया, परंतु उन्होंने आग्रह नहीं माना।
राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं को ज्ञापन सौंपा गया
इस मामले को लेकर संत गंगाराम जी के परिजन एवं शिष्यों ने समाज के अध्यक्ष राजेश बांधेवाल, सांसद दर्शन सिंह चौधरी (नर्मदापुरम) सहित संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को लिखित शिकायतें सौंपी हैं। उनका कहना है कि यह मंदिर केवल ईंट-पत्थर की संरचना नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्षों की आस्था और संस्कृति का प्रतीक है।
पूर्व पुजारी के पुत्र ने जताई पीड़ा
पूर्व पुजारी प्रहलाद सिंह के पुत्र और पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद के सदस्य शालिकराम चौधरी ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि मैं दुनिया की धरोहरें संजोने का काम करता हूँ, लेकिन अफसोस है कि अपने ही समाज की धरोहर को टूटने से नहीं बचा पाया। यह धरोहर केवल स्थान नहीं, बल्कि जांगड़ा समाज की आस्था की पहचान है। हम मांग करते हैं कि यह विवाद समाज के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा सुलझाया जाए और मंदिर का नाम, स्वरूप व संस्थापक का सम्मान यथावत रखा जाए।
नोट: समाज के लोगों की यह मांग है कि नव निर्मित मंदिर को “गुलाब मंदिर” न कहकर पूर्व की तरह “शिव मंदिर” ही कहा जाए, उसमें पूर्व की शिव-पार्वती और गणेश परिवार की मूर्तियाँ पुनः स्थापित की जाएं और संत गंगाराम जी का नाम संस्थापक रूप में सम्मानपूर्वक अंकित किया जाए।






