
भोपाल। जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय, भोपाल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर कार्यरत कामता प्रसाद रायकवार की मृत्यु 26 जून को हो गई थी। परिवार द्वारा तत्काल विभाग को सूचना दी गई और विभाग के अधिकारी व कर्मचारी अंतिम संस्कार में भी सम्मिलित हुए। बावजूद इसके, मृत्यु के बाद मिलने वाली ₹1,25,000 की अनुग्रह राशि अब तक उनके परिवार को प्रदान नहीं की गई है।
मृतक कर्मचारी के परिजनों ने नियमानुसार अंतिम संस्कार की रसीद और अस्पताल द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग को जमा कर दिए हैं। लेकिन इसके बाद भी उन्हें बार-बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। जब परिवार ने अधिकारियों से संपर्क किया, तो उनसे नगर निगम का मृत्यु प्रमाण पत्र मांगा गया — जो कि न तो आवश्यक है और न ही किसी नियम में इसकी अनिवार्यता दर्ज है।
विभागीय लापरवाही से आहत परिवार
कामता प्रसाद रायकवार के परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही चुनौतीपूर्ण रही है। मृत्यु के बाद मिलने वाली यह अनुग्रह राशि अंतिम संस्कार के खर्च और परिजनों की तात्कालिक सहायता के लिए दी जाती है, लेकिन 12 दिन बीत जाने के बावजूद भी राशि न मिलना, विभागीय लापरवाही और असंवेदनशीलता का गंभीर उदाहरण है।
प्रशासनिक उदासीनता या जानबूझकर अड़ंगा?
यह सवाल उठता है कि जब सारे दस्तावेज पहले ही जमा किए जा चुके हैं, तो फिर एक गैर-जरूरी दस्तावेज की मांग क्यों की जा रही है? क्या यह एक नियम विरुद्ध अड़ंगा है या विभागीय अधिकारियों की मृतक कर्मचारी के प्रति असंवेदनशीलता?
परिवार की मांग
मृतक के परिजनों ने मांग की है कि —
जल्द से जल्द अनुग्रह राशि प्रदान की जाए,
अनावश्यक दस्तावेज की मांग बंद की जाए,
और इस प्रकार की लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
निष्कर्ष
जल संसाधन विभाग भोपाल की यह घटना प्रशासनिक प्रणाली पर सवाल खड़े करती है। जहां एक ओर कर्मचारी की सेवा के बाद, उसकी मृत्यु पर सम्मानजनक सहायता दी जानी चाहिए, वहीं दूसरी ओर लालफीताशाही और अनावश्यक अड़चनों के कारण परिवार को अपमान और पीड़ा झेलनी पड़ रही है। यह मामला न सिर्फ विभाग की संवेदनशीलता की परीक्षा है, बल्कि राज्य सरकार की जवाबदेही का भी विषय बनता है।