छोला मंदिर थाने में दिखा महिला थाना प्रभारी का मानवीय चेहरा – चाय की चुस्की के बीच सुनी इंसाफ की अनसुनी कहानी

Bhopal । भोपाल के छोला मंदिर थाना क्षेत्र में एक मामूली चाय की चुस्की ने पुलिस व्यवस्था का वह रूप दिखाया, जिसे लोग अक्सर महसूस तो करते हैं लेकिन कह नहीं पाते। यहाँ महिला थाना प्रभारी के मानवीय व्यवहार और तत्परता ने न सिर्फ लोगों का विश्वास जीता, बल्कि यह भी साबित किया कि असली पुलिसिंग वही है जहाँ हर पीड़ित की बात सुनी जाए और उसे न्याय दिलाने की दिल से कोशिश की जाए। नीचे पढ़िए एक ऐसी अनसुनी कहानी, जिसने इस छोटे-से थाना परिसर में इंसाफ की बड़ी मिसाल पेश कर दी।
महिला थाना प्रभारी की ईमानदार कोशिशें बनी चर्चा का विषय
भोपाल के छोला मंदिर थाने के पास चाय पीते हुए कुछ लोगों की बातचीत ने ध्यान खींच लिया। वे उत्साहित होकर बता रहे थे कि महिला थाना प्रभारी मैडम ने उनकी आर्थिक शिकायत में मदद की और उधार दिए पैसे वापस दिलवाए—जो आमतौर पर बेहद कठिन होता है। लोगों की आवाज़ में कृतज्ञता साफ झलक रही थी। एक व्यक्ति ने कहा कि “मैडम की वजह से हमें उम्मीद लौटी है… वरना पुलिस ऐसे मामलों में हाथ खड़े कर देती है।”
छोटे-से थाना परिसर में बड़ा दिल
उत्सुकता से भरे मैं तुरंत छोला मंदिर थाना परिसर पहुँचा। यह भोपाल के सबसे छोटे और सीमित जगह पर बने थानों में से एक है—जहाँ दो छोटे हॉल और दो दड़बा-नुमा कमरे ही पूरे कार्यालय की सीमा तय करते हैं।
उसी छोटे-से कमरे में महिला थाना प्रभारी स्वयं हर शिकायतकर्ता की बात ध्यान से सुन रही थीं, उनकी आँखों में तसल्ली और व्यवहार में अपनापन था।
जनता के चेहरे पर संतुष्टि ही पुलिसिंग का असली पैमाना
करीब बीस मिनट तक बाहर खड़े होकर मैंने शिकायतकर्ताओं की भावनाएँ महसूस कीं। उनके चेहरों पर संतोष था, जैसे उन्हें सिर्फ समाधान नहीं, सम्मान भी मिला हो। चाय की दुकान से लेकर थाना परिसर तक लोगों की चर्चा बस इसी अधिकारी के काम की थी।
असल पुलिसिंग—जहाँ हर आवाज़ महत्त्वपूर्ण
यह अनुभव साफ बताता है कि पुलिस का असली चेहरा वही है—जहाँ हर पीड़ित को समय दिया जाए, उसकी बात समझी जाए और पूरी ईमानदारी से मदद की जाए।
छोला मंदिर थाना प्रभारी ने यह साबित किया है कि मानवता और संवेदनशीलता से की गई पुलिसिंग जनता के दिल जीत लेती है और भरोसे को मजबूत बनाती है।





