कांकेर, छत्तीसगढ़। राज्य और केंद्र सरकारें विकास के दावे करती हैं, मगर कांकेर जिले के केसालपारा गांव की जमीनी हकीकत उन दावों की पोल खोल रही है। यहां के बच्चों को हर रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल जाना पड़ता है। माध्यमिक विद्यालय के लिए बच्चों को एक बहते नाले को पार करना होता है, जो बरसात में कमर तक पानी से भर जाता है। यह नाला केसालपारा और कानागांव के बीच स्थित है।
बरसात में और बदतर हो जाती है स्थिति
जून से सितंबर तक जब नाले में पानी उफान पर होता है, तब कई बच्चों को स्कूल जाना छोड़ना पड़ता है। जो जाते हैं, वे अक्सर स्कूल बैग और किताबें भीग जाने की शिकायत करते हैं। कई बार तो छोटे बच्चे बहते पानी में फिसलने का खतरा भी उठा चुके हैं।
गांव में है प्राथमिक स्कूल, लेकिन माध्यमिक शिक्षा के लिए पार करना पड़ता है नाला
केसालपारा गांव में केवल प्राथमिक विद्यालय है। कक्षा 6 से आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को पास के कानागांव जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से स्थायी पुल निर्माण की मांग की है, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं।
जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की अनदेखी
स्थानीय जिला पंचायत सदस्य भी इस मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं। मगर न तो पंचायत स्तर पर कोई ठोस कदम उठाया गया, और न ही जिला प्रशासन की ओर से कोई कार्य योजना सामने आई है। चुनावी मौसम में पुल का वादा जरूर होता है, लेकिन चुनाव बीतते ही फाइलों में धूल जमने लगती है।
क्या यही है ‘विकास’ का असली चेहरा?
अगर एक छोटे से पुल के लिए ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को सालों तक इंतजार करना पड़े, तो यह सवाल उठता है कि शासन-प्रशासन की प्राथमिकता आखिर क्या है? क्या विकास सिर्फ शहरी पोस्टर-बैनरों तक सीमित है, या फिर ग्रामीण बच्चों की जान की भी कोई कीमत है?
प्रशासन तत्काल स्थायी पुल निर्माण की घोषणा करे
इस नाले पर यदि एक स्थायी पुल बना दिया जाए, तो न सिर्फ केसालपारा गांव के बच्चों की शिक्षा बाधित होने से बचेगी, बल्कि ग्रामीणों का जीवन भी आसान हो जाएगा। ज़िला प्रशासन, लोक निर्माण विभाग और जनप्रतिनिधियों को इस मुद्दे पर गंभीरता से संज्ञान लेने की आवश्यकता है।
कांकेर के केसालपारा गांव के बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं, कहां है विकास का पुल?
