
युवा चिकित्सकों ने उठाया सवाल : वैज्ञानिक प्रगति और नैतिक संवेदना के बीच संतुलन कैसे?
भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल अपने विद्यार्थियों में जिम्मेदार और नैतिक चिकित्सा दृष्टिकोण विकसित करने के लिए लगातार प्रेरक शैक्षणिक गतिविधियाँ आयोजित कर रहा है। इसी क्रम में फार्माकोलॉजी विभाग द्वारा एमबीबीएस 2024 बैच के विद्यार्थियों के लिए जैव-चिकित्सा अनुसंधान में पशुओं का उपयोग विषय पर छात्र वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित की गई।
इस प्रतियोगिता का उद्देश्य विद्यार्थियों को चिकित्सा अनुसंधान और शिक्षा में पशुओं के उपयोग से जुड़े नैतिक, वैज्ञानिक और संवेदनात्मक पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करना था। सत्र ने छात्रों को यह समझने का अवसर दिया कि वैज्ञानिक प्रगति और मानवीय संवेदना के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है।
कार्यक्रम में ट्रांसलेशनल मेडिसिन और फॉरेंसिक मेडिसिन विभागों के वरिष्ठ संकाय सदस्य उपस्थित रहे, जिन्होंने चर्चा को बहुआयामी दृष्टिकोण से समृद्ध किया।
वाद-विवाद में कुल छह छात्रों ने भाग लिया।
पक्ष में: प्रियांशु, अक्षत मिश्रा और मानव खत्री
विपक्ष में: नायर मज़नस, शिवम कुमार और ताहिरा कुतुब
प्रतिभागियों ने ठोस वैज्ञानिक तथ्यों, तार्किक प्रत्युत्तरों और नैतिक दृष्टिकोण के साथ अपने विचार रखे, जिससे सत्र ज्ञानवर्धक और रोचक बन गया।
निर्णायक मंडल में डॉ. शुभम अटल, अतिरिक्त प्रोफेसर, फार्माकोलॉजी विभाग, डॉ. मुरली एम, एसोसिएट प्रोफेसर, ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग, डॉ. मेघा कटारे पांडे, अतिरिक्त प्रोफेसर, ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग शामिल थे । करीबी मुकाबले के बाद प्रियांशु (पक्ष) और शिवम कुमार (विपक्ष) को वाद-विवाद के विजेता घोषित किया गया।
कार्यक्रम का समापन प्रो. (डॉ.) बालकृष्णन एस., विभागाध्यक्ष, फार्माकोलॉजी विभाग के प्रेरक उद्बोधन से हुआ। उन्होंने कहा कि विज्ञान केवल प्रयोग नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है। पशु अनुसंधान में नैतिकता और करुणा का पालन वैज्ञानिकता जितना ही आवश्यक है।
एम्स भोपाल द्वारा आयोजित यह प्रतियोगिता न केवल शैक्षणिक दृष्टि से उपयोगी रही, बल्कि विद्यार्थियों में नैतिक चेतना और संवेदनशील वैज्ञानिक सोच विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई।



