भोपाल: कुक्कुट विकास निगम के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल पांचवें दिन भी जारी, मंत्री के निर्देशों के बावजूद आदेश लंबित

भोपाल । कुक्कुट विकास निगम भोपाल के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल लगातार पांचवें दिन भी जारी रही। कर्मचारियों का कहना है कि पशुपालन मंत्री लखन पटेल के तीन बार निर्देश देने के बावजूद अब तक संविदा नीति लागू नहीं की गई है और नियमितीकरण आदेश भी लंबित पड़े हैं।
हड़ताल कर रहे कर्मचारियों का आरोप है कि कुक्कुट विकास निगम के प्रबंध संचालक डॉ. राजू रावत, पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव उमाकान्त उमराव, और मंत्री के विशेष सहायक पी. सी. जैन को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि संविदा नीति पर तत्काल निर्णय लेकर आदेश जारी किए जाएं, फिर भी फ़ाइलें मंत्रालय में एक टेबल से दूसरी टेबल तक घूम रही हैं।
संविदा नीति को लेकर देरी क्यों?
कर्मचारियों के अनुसार, सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 22 जुलाई 2023 को जारी परिपत्र की कंडिका 3.1 से 3.5 के अंतर्गत संविदा नीति को 10 अगस्त 2023 तक लागू किया जाना चाहिए था। विभाग ने 10.08.2023 की तारीख को समयसीमा निर्धारित की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
गंभीर आरोप यह भी है कि शासन द्वारा मांगी गई जानकारी में कुक्कुट विकास निगम ने जानबूझकर गलत एवं अपूर्ण डेटा भेजा, जिसमें बताया गया कि कोई संविदा कर्मचारी कार्यरत नहीं है, जबकि वास्तव में निगम में 47 संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके बावजूद, गलत जानकारी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
मंत्री बनाम अफसरशाही: किसकी चलेगी?
यह प्रकरण मध्यप्रदेश में अफसरशाही बनाम मंत्री की इच्छाशक्ति के टकराव का प्रतीक बनता जा रहा है। पशुपालन मंत्री लखन पटेल स्वयं इस मुद्दे पर तीन बार बैठकें कर चुके हैं, लेकिन कुक्कुट विकास निगम में संविदा नीति को लेकर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी है।
हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों का कहना है कि अब देखना यह होगा कि मंत्री के निर्देशों को शासन-प्रशासन कब तक अनदेखा करता है या फिर आखिरकार संविदा नीति लागू कर कर्मचारियों को राहत दी जाती है।
संविदा महासंघ की चेतावनी
मध्यप्रदेश संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के अध्यक्ष श्री रमेश राठौर ने सरकार को चेतावनी दी है कि जब तक संविदा नीति लागू कर आदेश जारी नहीं किए जाते, हड़ताल जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि सरकार को कुक्कुट विकास निगम में कार्यरत कर्मचारियों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, वरना आंदोलन और तेज़ किया जाएगा।
यह मामला एक बार फिर मध्यप्रदेश में कर्मचारियों की समस्याओं और सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है। क्या इस बार मंत्री के निर्देश असरदार साबित होंगे? या फिर संविदा कर्मचारी यूं ही सरकारी अनदेखी के शिकार होते रहेंगे?