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MP विधानसभा में सिंगरौली पेड़ कटाई विवाद गरमाया: अडाणी समूह की कोयला खदानों पर कांग्रेस का बड़ा हमला, मंत्री जवाब देने में नाकाम

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सिंगरौली जिले में बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई का मुद्दा सदन में जमकर गूंजा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अडाणी समूह को दी गई खदानों के कारण सिंगरौली के घने जंगल उजाड़े जा रहे हैं और लगभग 6 लाख पेड़ों की कटाई की जा रही है। चर्चा के दौरान वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार स्पष्ट जवाब नहीं दे सके, जिसके चलते सदन में तीखी नोक-झोंक के बाद कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी करते हुए वॉकआउट कर दिया।

कांग्रेस का आरोप: पूरा जंगल अडाणी को दे दिया गया

कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने आरोप लगाया कि पेड़ कटाई पूरी तरह अवैध है और सिंगरौली के जंगलों को व्यवस्थित तरीके से खत्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासी जल–जंगल–जमीन से पहचाने जाते हैं। जंगल काटकर सागर और शिवपुरी में पौधे लगाना कैसा न्याय है? पूरा जंगल अडाणी को दे दिया गया है। भूरिया ने यह भी कहा कि मंत्री खुद स्वीकार कर चुके हैं कि सिंगरौली में 6 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं, जो आदिवासी जीवन और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अडाणी के एजेंट की तरह काम कर रही है।

भाजपा का जवाब: पेड़ कटाई नियमों के तहत, पेसा एक्ट लागू नहीं

जवाब देते हुए वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार ने कहा कि खदान क्षेत्र में जो भी पेड़ काटे जा रहे हैं, वे नियमों के अनुसार काटे जा रहे हैं और जितनी कटाई हो रही है, उतने ही पेड़ पुनः लगाए भी जा रहे हैं। समर्थन में संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सिंगरौली क्षेत्र कभी भी पेसा एक्ट के दायरे में नहीं रहा क्योंकि यहां आदिवासी आबादी कम है। लेकिन विपक्ष नेता उमंग सिंघार ने पलटवार करते हुए कहा कि अगस्त 2023 के दस्तावेज़ साफ बताते हैं कि संबंधित क्षेत्र पेसा एक्ट के दायरे में आता है, फिर तथ्य छुपाकर अनुमति कैसे दी गई?

जवाब न मिलने पर कांग्रेस का वॉकआउट

जवाबों में बार-बार उलझाव और अस्पष्टता के चलते कांग्रेस विधायकों ने सदन के अंदर कड़ी नारेबाजी की और आखिरकार वॉकआउट कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने मामले का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए कहा कि वन मंत्री अलग से बैठक में नेता प्रतिपक्ष को पूरा जवाब देंगे।

सिंगरौली में पेड़ कटाई का मुद्दा अब केवल पर्यावरण का नहीं रहा, बल्कि यह अडाणी समूह, पेसा एक्ट, आदिवासी अधिकारों और सरकार की पारदर्शिता से जुड़ा बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया है। विपक्ष लगातार दबाव बना रहा है, जबकि सरकार अपने रुख पर कायम है कि सभी कार्यवाही नियमों के तहत हो रही है। आने वाले दिनों में यह मामला मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।

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