State

बिहार में 13 करोड़ का रोप-वे ट्रायल रन में टूटा: 1 जनवरी से शुरू होनी थीं सेवाएं, सुरक्षा पर गंभीर सवाल

पटना/बिहार । बिहार में पर्यटन और बुनियादी ढांचे के नाम पर बनाई गई 13 करोड़ रुपये की लागत वाली रोप-वे परियोजना ट्रायल रन के दौरान टूट गई। यह घटना ऐसे समय सामने आई है, जब 1 जनवरी से आम जनता के लिए इसकी सेवाएं शुरू होनी थीं। ट्रायल के दौरान ही तकनीकी खामी उजागर होना एक ओर जहां बड़ी दुर्घटना को टालने वाला संयोग माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह सरकारी परियोजनाओं की गुणवत्ता, निगरानी और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

ट्रायल में टूटा तो बची जानें, वरना बड़ा हादसा तय था

विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यह रोप-वे सीधे संचालन के दौरान टूटता, तो कई निर्दोष लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी। ट्रायल रन का उद्देश्य ही यही होता है कि तकनीकी कमियों को पहले ही उजागर किया जाए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रायल में ही टूट जाना बेहतर है, बजाय इसके कि किसी और के जीवन को दांव पर लगाया जाए।

ठेकेदारी व्यवस्था और गुणवत्ता पर सवाल

13 करोड़ की भारी लागत से बनी परियोजना का ट्रायल में असफल होना यह दर्शाता है कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता मानकों की अनदेखी हुई। सवाल यह भी है कि क्या सामग्री की गुणवत्ता की जांच हुई थी? क्या डिजाइन और सुरक्षा मानकों का पालन किया गया? क्या स्वतंत्र तकनीकी ऑडिट कराया गया था? अगर इन सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया होता, तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती।

निविदा और अनुबंध प्रणाली की गहन जांच जरूरी

यह घटना केवल एक रोप-वे तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में चल रही करोड़ों की परियोजनाओं की निविदा और अनुबंध प्रणाली पर सवाल खड़ा करती है। ऐसे मामलों में केवल विभागीय जांच या लीपापोती से काम नहीं चलेगा।

CBI के अधीन ‘निविदा एवं अनुबंध अन्वेषण ब्रांच’ बनाने की जरूरत

इस तरह की दुखद और संभावित जानलेवा घटनाओं की सतर्कता, निवारण और न्याय के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली तंत्र की आवश्यकता है।
प्रस्ताव है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के अधीन एक विशेष निविदा एवं अनुबंध अन्वेषण ब्रांच का गठन किया जाए जिसमें नेता प्रतिपक्ष वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि, आईआईटी (IIT) के तकनीकी विशेषज्ञ, डीआरडीओ (DRDO), रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिकारी एवं न्यायाधीश शामिल हों ताकि बड़ी परियोजनाओं की निष्पक्ष, तकनीकी और वित्तीय निगरानी हो सके।

जनता की जान से बड़ा कुछ नहीं

विकास के नाम पर जल्दबाजी और कमीशनखोरी अगर इंसानी जान पर भारी पड़ने लगे, तो यह लोकतंत्र और शासन व्यवस्था दोनों के लिए खतरे की घंटी है। बिहार रोप-वे हादसा एक चेतावनी है—अब भी समय है कि सिस्टम सुधारा जाए, वरना अगली खबर ट्रायल की नहीं, त्रासदी की होगी।

Related Articles