विवादित बयान पर छिड़ा सियासी घमासान: सुब्रमण्यम स्वामी की टिप्पणी पर विपक्ष और महिला संगठनों की चुप्पी सवालों में

नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में विवादित बयानों की श्रृंखला थमने का नाम नहीं ले रही। हाल ही में वरिष्ठ राजनेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध की गई एक अपमानजनक टिप्पणी ने सियासी हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है। हालांकि, इस बयान के बाद जहां आम जनता और सोशल मीडिया पर विरोध के स्वर उठे, वहीं आश्चर्यजनक रूप से मुख्यधारा राजनीतिक दल, महिला अधिकार संगठन, और मानवाधिकार संस्थान इस मुद्दे पर चुप नजर आए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्वामी द्वारा उपयोग किए गए शब्दों को राजनीतिक मर्यादा और सामाजिक गरिमा के प्रतिकूल माना जा रहा है। इस बयान के सार्वजनिक होने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि महिला आयोग या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) जैसे संस्थान स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेंगे, परंतु अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
विपक्ष की चुप्पी पर उठे सवाल
राजनीतिक पर्यवेक्षकों और आम जनता का सवाल है कि जब किसी अन्य विचारधारा से जुड़े नेता द्वारा विवादित टिप्पणी होती है तो तत्काल प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्विटर पर तीखी प्रतिक्रियाएं आती हैं। लेकिन इस बार तमाम विपक्षी दल, विशेषकर महिला अधिकारों के पैरोकार माने जाने वाले संगठन, चुप्पी साधे हुए हैं।
महिला आयोग और मानवाधिकार संगठनों की निष्क्रियता
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि अब तक इस मामले में कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है। इसी प्रकार मानवाधिकार संगठनों की निष्क्रियता को भी सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया पर विरोध
ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर आम नागरिकों ने इस बयान की कड़ी निंदा करते हुए ‘सेलेक्टिव साइलेंस’ पर प्रश्न खड़े किए हैं। कई यूजर्स ने यह भी पूछा है कि क्या महिला सम्मान की बात केवल चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है?
निष्कर्ष
भारतीय लोकतंत्र में विचारों की स्वतंत्रता का विशेष स्थान है, परंतु यह स्वतंत्रता किसी के व्यक्तिगत सम्मान को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं देती। एक ओर जहां राजनीतिक आलोचना लोकतंत्र का आधार है, वहीं निजता, गरिमा और मर्यादा का उल्लंघन किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
सरकार, विपक्ष, महिला आयोग और सिविल सोसाइटी को चाहिए कि वे ऐसी टिप्पणियों को लेकर एक समान मानदंड अपनाएं, ताकि भविष्य में राजनीति मर्यादा की सीमाएं लांघने का मंच न बने।