भोपाल में DIG बंगला चौराहे पर चेकिंग के दौरान हंगामा, दबंगों के आगे बेबस दिखी पुलिस

भोपाल । थाना गौतम नगर क्षेत्र राजधानी भोपाल के DIG बंगला चौराहे पर शुक्रवार को वाहन चेकिंग के दौरान उस समय हंगामा हो गया जब दस्तावेज़ न दिखा पाने वाले कुछ वाहन चालकों ने दबंगई पर उतरते हुए पुलिस टीम को खुलेआम चुनौती दी। इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पुलिस का कानून पालन कराने का कर्तव्य अब राजनीतिक हस्तक्षेप और दबंगों के आगे बेबस हो चुका है?

चेकिंग के दौरान शुरू हुआ विवाद

थाना गौतम नगर के एसआई हेमंत पाटिल अपनी टीम के साथ DIG बंगला चौराहे पर वाहनों की चेकिंग कर रहे थे। अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी वाहन चालक वैध दस्तावेज़ों के साथ यात्रा करें। पुलिस टीम हर वाहन को रोककर उसके कागजों की जांच कर रही थी।

इसी बीच, कुछ ऐसे वाहन चालक रोके गए जो कोई दस्तावेज़ नहीं दिखा सके। जब उनसे दस्तावेज़ मांगे गए तो उन्होंने बहस करने के बजाय स्थानीय राजनीतिक नेताओं को फोन लगाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में कुछ “प्रभावशाली लोग” मौके पर पहुंच गए और पुलिसकर्मियों से बदतमीजी और गाली-गलौच करने लगे।

राजनीतिक हस्तक्षेप ने रोकी कार्रवाई

पुलिस टीम ने नियमों के तहत समझाया कि दस्तावेज़ प्रस्तुत करने पर वाहन छोड़ दिए जाएंगे, लेकिन दबंग लोग थाने ले जाने तक की कार्रवाई में भी बाधा डालने लगे। जब एक आरक्षक वाहन को थाने ले जाने के लिए आगे बढ़ा, तो उसे भी दबाव डालकर रोक दिया गया।

मामला और गंभीर तब हो गया जब एक व्यक्ति ने सीधे थाना प्रभारी (TI) महेंद्र प्रताप सिंह को फोन कर दिया और आरक्षक के मोबाइल से उनसे बात करवाई। नतीजा यह हुआ कि TI के निर्देश पर वाहन को मौके पर ही छोड़ दिया गया।

पुलिस टीम में नाराज़गी और निराशा

इस पूरी घटना से SI हेमंत पाटिल की टीम में गहरा असंतोष और निराशा दिखाई दी। टीम के सदस्यों का मानना है कि यदि ऐसी दबंगई के आगे पुलिस को झुकना पड़ेगा, तो कानून व्यवस्था की साख और कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।

प्रश्न जो उठते हैं…

क्या अब भोपाल जैसे शहर में पुलिस कानून का पालन कराने के लिए स्वतंत्र नहीं रह गई है?

क्या दस्तावेज़ न रखने वालों को केवल एक फोन कॉल से राहत मिलती रहेगी?

क्या सड़कों पर तैनात पुलिसकर्मी अब राजनीतिक दबाव में अपनी जिम्मेदारी निभाने से डरेंगे?


अब आगे क्या?

यह मामला केवल एक सड़क पर हुई बहस भर नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही और पुलिस स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। अब देखना यह है कि भोपाल पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी इस पूरे मामले पर क्या रुख अपनाते हैं —
क्या दोषियों पर कार्रवाई होती है या दबाव के आगे मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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