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क्रिसमस के अवसर पर रायपुर के स्कूल में बच्चों को पढ़ाया गया गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादों का सर्वोच्च बलिदान

रायपुर (छत्तीसगढ़) से एक प्रेरक और विचारोत्तेजक पहल सामने आई है, जहाँ क्रिसमस के अवसर पर किसी औपचारिक उत्सव के बजाय एक स्कूल में बच्चों को दसवें सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादों के सर्वोच्च बलिदान, साहस और धर्मनिष्ठा के बारे में शिक्षित किया गया। यह निर्णय न केवल शिक्षा की दिशा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि भारतीय संस्कारों और मूल्य आधारित शिक्षा की महत्ता को भी रेखांकित करता है।

मुख्य समाचार:
रायपुर के इस स्कूल में आयोजित विशेष कक्षा के दौरान विद्यार्थियों को बताया गया कि गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादे केवल इतिहास के पात्र नहीं हैं, बल्कि वे अडिग आस्था, निर्भीक साहस और धर्मरक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करने की चेतना के अमर प्रतीक हैं। मुग़ल सत्ता के अमानवीय अत्याचारों के सामने भी उनका झुकने से इंकार करना यह सिखाता है कि सत्य और धर्म की राह कठिन अवश्य होती है, लेकिन आत्मसम्मान और नैतिकता से समझौता कभी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

शिक्षकों ने बच्चों को यह भी समझाया कि सच्ची वीरता केवल हथियार उठाने में नहीं, बल्कि अन्याय, अत्याचार और दबाव के सामने अडिग रहने में होती है। इस पहल का उद्देश्य विद्यार्थियों में राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना विकसित करना बताया गया।

शिक्षा और संस्कार का संदेश:
आज के दौर में जब शिक्षा को केवल करियर, प्रतिस्पर्धा और भौतिक सफलता तक सीमित किया जा रहा है, ऐसे में यह कदम बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा, चरित्र निर्माण और नैतिक साहस का महत्व समझाता है। यह किसी त्योहार के विरोध का विषय नहीं, बल्कि अपनी सभ्यता, अपने नायकों और अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ने का प्रयास है।

निष्कर्ष:
रायपुर के इस स्कूल की पहल यह संदेश देती है कि यही असली शिक्षा है, यही भारतीय संस्कार हैं, और यही वह चेतना है जो आने वाली पीढ़ियों को केवल सफल ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार और चरित्रवान नागरिक बनाती है।

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