बाड़मेर (राजस्थान)। अब बोल उस वक्त तो बहुत शेर बन रहे थे ना…यह कथित शब्द उस प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं, जहां जनता की समस्याएं सुनने के लिए लगाए गए शिविर में ही सवाल पूछना अपराध बन गया। बाड़मेर में आयोजित एक जनसुनवाई/समस्या निवारण शिविर के दौरान एक युवक ने क्षेत्र से जुड़ी बुनियादी समस्याओं को लेकर अधिकारियों से खरी-खोटी सुनाई। युवक का आरोप है कि उसने सड़क, पानी और प्रशासनिक लापरवाही जैसे मुद्दों को मजबूती से उठाया, लेकिन जवाबदेही तय करने के बजाय कलेक्टर टीना डाबी नाराज़ हो गईं।प्रत्यक्षदर्शियों और वायरल वीडियो/बयानों के अनुसार, सवाल पूछने वाले युवक को समझाने के बजाय उल्टा उसी को धमकाने का लहजा अपनाया गया। आरोप है कि कलेक्टर ने सार्वजनिक मंच से युवक को डराने वाले शब्द कहे, जिससे वहां मौजूद लोगों में असहजता फैल गई।
जनता सवाल पूछे तो अफसर नाराज़?
यह घटना उस लोकतांत्रिक सोच के विपरीत मानी जा रही है, जहां जनसुनवाई का उद्देश्य जनता की बात सुनना और समाधान देना होता है, न कि सवाल करने वालों को चुप कराना। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तेजी से उठ रहा है और लोग पूछ रहे हैं, क्या प्रशासनिक शिविर केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं? क्या अधिकारियों से सवाल पूछना अब अपराध की श्रेणी में आ गया है? अगर अफसर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहें, तो क्या जनता को सवाल पूछने का अधिकार नहीं?
प्रशासनिक संवेदनशीलता पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने अभिव्यक्ति की आज़ादी, प्रशासनिक अहंकार और जवाबदेही जैसे मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया है। जनता का मानना है कि यदि अधिकारी सार्वजनिक मंच पर आलोचना सहन नहीं कर सकते, तो जनसुनवाई का औचित्य ही क्या रह जाता है?अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि प्रशासन इस मामले में कोई स्पष्टीकरण देता है या नहीं, और क्या सवाल पूछने वाले युवक को न्याय मिलेगा।
अब बोलो… सवाल पूछने पर कलेक्टर टीना डाबी नाराज़, युवक को दी धमकी!
