
Bhind . जिले का ऐतिहासिक नगर गोहद इस समय विकास की अंधी नीतियों और प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक बन गया है। दस घंटे तक चला भयावह जाम न सिर्फ ट्रैफिक अव्यवस्था का संकेत था, बल्कि उस अन्याय का जीवंत प्रमाण भी, जिसमें जनता की पीड़ा को योजनाओं की राजनीति के नीचे दबा दिया गया।
गोहद में गुरुवार को दस घंटे तक चला जाम अब एक सवाल बनकर उभर आया है, क्या गोहद की जनता इंसान नहीं?
एम्बुलेंस सायरन बजाते रह गई, बीमार तड़पते रहे, बच्चे भूख से रोते रहे, और बुज़ुर्ग तपती सड़क पर ठहर गए। यह सब इसलिए क्योंकि जिस बायपास से गोहद को राहत मिल सकती थी, उसे रद्द कर दिया गया और उसकी जगह दी जा रही है एलीवेटेड रोड जो राहत नहीं, बोझ बन चुकी है। स्थानीय लोगों का कहना है, सत्ता ने गोहद की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया है। बायपास की जगह एलीवेटेड रोड का निर्णय जनता से विश्वासघात है।
व्यापारी वर्ग, संत समाज और युवाओं ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उनका कहना है कि यह सिर्फ़ ट्रैफिक या निर्माण का मामला नहीं, बल्कि गोहद के अस्तित्व और सम्मान का प्रश्न बन चुका है। लोगों का गुस्सा अब आंदोलन में बदलने लगा है। हर गली में यही सवाल गूंज रहा है, जब हम जाम में मर रहे थे, तब हमारे नेता कहाँ थे?
गोहद अब सिर्फ़ जाम से जूझता शहर नहीं रहा , यह जागरूकता और अस्मिता की नई कहानी लिख रहा है। यह जनता अब चुप नहीं रहेगी, क्योंकि जब गोहद उठता है, तो फैसले बदल जाते हैं।





