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अपने ही जुड़वां नवजात बेटों की हत्या करने वाली मां को आजीवन कारावास

20 दिन के मासूमों को निर्दयता से मारकर झाड़ियों में फेंक आई थी मां, न्यायालय ने कहा यह अपराध पूरी मानवता के खिलाफ है

भोपाल। राजधानी में एक ऐसी घटना सामने आई थी जिसने ममता की परिभाषा को ही झकझोर दिया था। अपने ही 20 दिन के जुड़वां बच्चों की हत्या करने वाली आरोपी मां सपना धाकड़ को अब न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह फैसला बारहवें अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जयंत शर्मा की अदालत ने सुनाया। सपना को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और 2,000 रुपए के अर्थदंड तथा धारा 201 के तहत 5 वर्ष के सश्रम कारावास व 1,000 रुपए के जुर्माने से दंडित किया गया।
इस मामले की पैरवी शासन की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्रीमती वंदना परते ने की।

कैसे उजागर हुई निर्ममता की कहानी

मामला वर्ष 2022 का है। सपना धाकड़ ने भोपाल के 1250 अस्पताल में 5 सितंबर 2022 को जुड़वां बेटों को जन्म दिया था। 10 दिन बाद वह घर लौट आई। लेकिन 22-23 सितंबर की रात वह दोनों बच्चों को लेकर अपने घर कोलार कॉलोनी से निकली और सुबह पांच बजे तक घरवालों को बिना बताए रंगमहल चौराहा पहुंची। वहां दोनों बच्चों को फुटपाथ किनारे एक ठेले के पास सुलाकर वह दूसरी ओर गई, लौटकर आई तो बच्चे गायब थे।

उसने पति ब्रजमोहन धाकड़ को फोन कर बच्चों के अपहरण की झूठी कहानी सुनाई और थाने में धारा 363 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज करवाई।

लेकिन पुलिस जांच ने सपना की चालाकी का भंडाफोड़ कर दिया। सीसीटीवी फुटेज में वह बच्चों के साथ घर से निकलती तो दिखी, लेकिन हबीबगंज पेट्रोल पंप के पास बिना बच्चों के लौटती हुई पाई गई। सख्त पूछताछ पर उसने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया।

उसकी निशानदेही पर रविशंकर नगर, हबीबगंज के खाली प्लॉट में झाड़ियों से दोनों नवजात शिशुओं के शव बरामद हुए। पुलिस ने मामले में धारा 302 और 201 जोड़कर चालान पेश किया।

न्यायालय की टिप्पणी: यह अपराध केवल बच्चों के नहीं, समस्त माताओं के विरुद्ध है

फैसले में न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा अपने ही 20 दिन के नवजात बच्चों की हत्या, मां और पुत्र के पवित्र संबंध की मर्यादा को नष्ट करने वाला कृत्य है। यह केवल दो बच्चों के विरुद्ध नहीं, बल्कि समस्त मातृत्व की भावना के विरुद्ध अपराध है।



न्यायाधीश ने यह भी कहा कि सपना को मृत्युदंड देना उसे ग्लानि से मुक्त कर देगा, परंतु अपने शेष जीवन तक जेल में पश्चाताप भोगना ही सबसे बड़ा दंड होगा।

निष्कर्ष

यह फैसला न केवल भोपाल बल्कि पूरे देश में ममता और नैतिकता के प्रति एक गहरी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि समाज में ऐसे अपराधों के लिए कोई सहानुभूति नहीं हो सकती, क्योंकि मां का प्रेम ही जब हिंसा में बदल जाए, तो पूरा मानव समाज हिल उठता है।

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