गोहद में शिक्षा के नाम पर हो रहा खुला शोषण, नन्हे बच्चों के अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही पढ़ाई
गोहद (भिंड)। शिक्षा जो कभी समाज को जागरूक और सशक्त बनाने का माध्यम मानी जाती थी, आज वही शिक्षा निजी स्कूलों के लिए एक मुनाफे का उद्योग बन गई है। गोहद क्षेत्र में प्राइवेट स्कूलों द्वारा की जा रही फीस वसूली और महंगी किताबों-ड्रेस के नाम पर हो रहा आर्थिक शोषण चिंता का विषय बन गया है।
प्राइवेट स्कूलों की लूट : ₹2500 से ₹4500 तक सिर्फ किताबों के लिए!
एलकेजी (LKG) और यूकेजी (UKG) जैसे शुरुआती कक्षाओं के बच्चों के लिए किताबों का खर्च ₹2500 से ₹4500 तक पहुँच चुका है। यह स्थिति तब और अधिक चिंताजनक हो जाती है जब स्कूल यूनिफॉर्म, बैग, जूते जैसी वस्तुओं की खरीद को भी स्कूल द्वारा निर्धारित विशेष दुकानों तक सीमित कर दिया जाता है। इससे न केवल प्रतिस्पर्धा समाप्त होती है, बल्कि अभिभावकों के पास विकल्पहीनता भी आ जाती है।
मध्यम और निम्न वर्ग पर आर्थिक बोझ
इन सभी अनावश्यक खर्चों का सीधा प्रभाव मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों पर पड़ रहा है। एक ओर माता-पिता बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का सपना देख रहे हैं, दूसरी ओर उन्हें हर साल हजारों रुपये केवल गैर-शैक्षणिक मदों में खर्च करने पड़ते हैं।
शिक्षा बन गई है व्यापार – मूल अधिकार की अनदेखी
संविधान में शिक्षा को एक मौलिक अधिकार माना गया है, लेकिन आज यह अधिकार मुनाफाखोरी की मानसिकता के नीचे दब गया है। यह स्थिति न केवल सामाजिक असमानता को बढ़ा रही है बल्कि बच्चों के भविष्य को भी एक खतरनाक दिशा की ओर ले जा रही है।
मांग: सख्त निगरानी और पारदर्शी फीस निर्धारण नीति लागू हो
बच्चे बचाओ अभियान और राजीव दीक्षित भारत न्याय ट्रस्ट जैसे सामाजिक संगठनों ने इस शोषणकारी प्रणाली पर रोक लगाने की पुरजोर मांग की है।
पुखराज भटेले, व्यवस्था परिवर्तन के संस्थापक और बच्चे बचाओ अभियान के अध्यक्ष ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “यदि शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता नहीं आई, और शासन-प्रशासन ने सख्ती नहीं दिखाई, तो आने वाली पीढ़ियाँ या तो शिक्षा से विमुख होंगी या फिर आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ेंगी।”
जिम्मेदार कौन?
जिला शिक्षा अधिकारी को तत्काल निरीक्षण करना चाहिए कि निजी स्कूलों में किताबों और ड्रेस के लिए अभिभावकों को क्या बाध्य किया जा रहा है। भिंड कलेक्टर एवं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेना चाहिए।
प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा के नाम पर लूट : बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय
