ब्राह्मण होने की ‘सजा’? बिहार में थानाध्यक्ष द्वारा प्रद्युम्न मिश्रा से जातिगत दुर्व्यवहार, SP ने किया सस्पेंड

शेखपुरा (बिहार)। जातिगत भेदभाव के खिलाफ बड़े-बड़े मंचों से भाषण देने वाले नेता, सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले बुद्धिजीवी और सामाजिक एकता की बात करने वाले मठाधीश अब मौन क्यों हैं, जब एक व्यक्ति को सिर्फ ब्राह्मण होने की वजह से पीटा गया और थूक चटवाया गया?

यह चौंकाने वाली घटना बिहार के शेखपुरा जिले से सामने आई है, जहाँ थानाध्यक्ष प्रवीण चंद दिवाकर पर ड्राइवर प्रद्युम्न मिश्रा के साथ जातिगत दुर्व्यवहार और मारपीट का गंभीर आरोप है। आरोप यह भी है कि मिश्रा को सिर्फ इसलिए अपमानित किया गया, क्योंकि उन्होंने अपने नाम में ‘मिश्रा’ जोड़ा था और थानाध्यक्ष ने उन्हें ‘ब्राह्मण’ मान लिया।

सूत्रों के अनुसार, शेखपुरा जिले में तैनात थानाध्यक्ष प्रवीण दिवाकर ने एक सामान्य पूछताछ के दौरान ड्राइवर प्रद्युम्न कुमार से उसकी जाति पूछी। जब प्रद्युम्न ने अपने नाम में “मिश्रा” जोड़ते हुए खुद को ब्राह्मण बताया, तो थानेदार ने कथित रूप से कहा कि ब्राह्मण हो? ब्राह्मण को मैं देखना नहीं चाहता! इसके बाद थानाध्यक्ष ने प्रद्युम्न मिश्रा की बेरहमी से पिटाई की और अपमान की सारी हदें पार करते हुए थूक कर चटवाया। यह अमानवीय व्यवहार कहीं न कहीं इस बात का संकेत देता है कि जातिवादी मानसिकता सिर्फ ऊँच-नीच की ओर से ही नहीं, विपरीत दिशा में भी खतरनाक रूप ले चुकी है।

SP ने की कार्रवाई, थानाध्यक्ष सस्पेंड

यह मामला जब शेखपुरा के पुलिस अधीक्षक (SP) के संज्ञान में आया, तो उन्होंने तत्काल जांच के आदेश दिए। जांच में थानाध्यक्ष दोषी पाए गए और प्रशासन ने तुरंत प्रवीण चंद दिवाकर को निलंबित कर दिया। हालांकि प्रशासनिक कार्रवाई की गति सराहनीय रही, लेकिन सवाल यह भी है कि अगर मामला मीडिया और जनता के सामने नहीं आता, तो क्या यही कार्रवाई होती?

ब्राह्मण होना क्या अब अपराध है?

इस पूरे प्रकरण ने एक गंभीर बहस को जन्म दिया है:
क्या आज के भारत में ब्राह्मण होना भी एक ‘संवेदनशील जातीय पहचान’ बन चुका है?
क्या जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई एकतरफा बन चुकी है?
क्या ब्राह्मण उत्पीड़न पर सोशल मीडिया, एक्टिविस्ट और मानवाधिकार संगठन चुप रहेंगे?

मौन क्यों हैं सामाजिक एकता के ठेकेदार?

जब किसी दलित, पिछड़े या अल्पसंख्यक के साथ अन्याय होता है, तो समाज में आक्रोश फैलता है — नेता धरना देते हैं, सामाजिक संगठन मोर्चा खोलते हैं। परंतु, प्रद्युम्न मिश्रा जैसे मामलों में यह मौन क्यों?
क्या यह दोहरे मापदंड नहीं हैं?

जातिवाद का विरोध अब समग्र होना चाहिए

भारत को अगर सच में सामाजिक न्याय और जाति-मुक्त समाज की ओर बढ़ना है, तो जातिगत अत्याचार चाहे किसी भी जाति पर हो — उसका समान विरोध होना चाहिए।
ब्राह्मण विरोधी मानसिकता को भी उतना ही गंभीर अपराध माना जाना चाहिए, जितना कि अन्य जातियों के खिलाफ भेदभाव।

निष्कर्ष और माँग:

आरोपी थानाध्यक्ष पर IPC की धारा 153-A, 295-A, 323, 504, 506 के तहत मामला दर्ज किया जाए। पीड़ित को मानवाधिकार आयोग से न्याय दिलाया जाए। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ जाति के नाम पर भेदभाव न हो।

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