
उदयपुर । लोकतंत्र की मजबूती जनप्रतिनिधियों के आचरण और संवाद की गरिमा पर निर्भर करती है। लेकिन जब वही प्रतिनिधि, जिन्हें जनता ने उम्मीद और विश्वास के साथ सदनों में भेजा है, आपसी वैमनस्य और असंयमित भाषा का प्रयोग करने लगें, तो यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को आहत करता है बल्कि जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है। ऐसा ही एक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम राजस्थान के उदयपुर में सामने आया है।
दिशा समिति की बैठक में गरमाया माहौल
उदयपुर में आयोजित दिशा समिति की बैठक के दौरान उस समय माहौल तनावपूर्ण हो गया, जब भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के विधायक उमेश डामोर और उदयपुर से भाजपा सांसद मन्नालाल के बीच तीखी नोकझोंक हो गई। बैठक के दौरान विधायक उमेश डामोर द्वारा सांसद मन्नालाल को कथित तौर पर धमकी भरे लहजे में यह कहना कि “लड़ाई करनी है तो बाहर आ जाना”, राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
वरिष्ठ अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में विवाद
इस बैठक में दो सांसद सदस्य, चार विधायक, जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी और सुरक्षाकर्मी भी मौजूद थे। ऐसे मंच, जहाँ विकास योजनाओं, जनकल्याणकारी कार्यक्रमों और प्रशासनिक समन्वय पर चर्चा होनी चाहिए थी, वहाँ इस प्रकार की भाषा और व्यवहार ने बैठक की गरिमा को ठेस पहुँचाई।
लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर उठते सवाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिशा समिति जैसे मंच संवाद और समन्वय के लिए बनाए जाते हैं, न कि व्यक्तिगत टकराव के लिए। एक विधायक द्वारा सांसद को इस प्रकार चुनौती देना न केवल असंसदीय है, बल्कि यह दर्शाता है कि राजनीति में संयम और शिष्टाचार लगातार कमजोर हो रहा है।
जनता में नाराज़गी, जिम्मेदारी तय करने की मांग
इस घटनाक्रम के सामने आने के बाद आम जनता और सामाजिक संगठनों में नाराज़गी देखी जा रही है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब जनप्रतिनिधि ही संयम खो दें, तो लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा। साथ ही मांग की जा रही है कि संबंधित राजनीतिक दल इस पूरे मामले का संज्ञान लें और जिम्मेदारी तय करें।





