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ग्रेटर नोएडा में बैक्सन हॉस्पिटल की घोर लापरवाही: सिजेरियन डिलीवरी के दौरान महिला के पेट में छोड़ा कपड़ा, CMO पर भी गंभीर आरोप

ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से चिकित्सा लापरवाही का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली और स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बैक्सन हॉस्पिटल में सिजेरियन डिलीवरी के दौरान डॉक्टरों की लापरवाही के चलते एक महिला के पेट में ऑपरेशन के दौरान कपड़ा छोड़ दिया गया। इसके बाद महिला को असहनीय दर्द से गुजरना पड़ा और अंततः कपड़ा निकालने के लिए दोबारा ऑपरेशन कराना पड़ा।

डॉ. अंजना पर गंभीर आरोप, ऑपरेशन थिएटर में घोर लापरवाही

पीड़िता के अनुसार बैक्सन हॉस्पिटल में डॉ. अंजना द्वारा कराई गई सिजेरियन डिलीवरी के दौरान ऑपरेशन प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। डिलीवरी के बाद महिला को लगातार तेज पेट दर्द, बुखार और संक्रमण की शिकायत बनी रही। कई बार अस्पताल के चक्कर लगाने के बावजूद सही जांच नहीं की गई। बाद में जब महिला की हालत गंभीर हुई और दूसरे अस्पताल में जांच कराई गई, तब अल्ट्रासाउंड और सर्जिकल जांच में सामने आया कि उसके पेट में ऑपरेशन के दौरान छोड़ा गया कपड़ा फंसा हुआ है।

कपड़ा निकलवाने के लिए कराना पड़ा दोबारा ऑपरेशन

महिला की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को तत्काल दूसरा ऑपरेशन करना पड़ा। इस सर्जरी में पेट से कपड़ा निकाला गया, लेकिन तब तक संक्रमण शरीर में फैल चुका था। डॉक्टरों ने साफ कहा कि इस लापरवाही के कारण अब महिला के लिए भविष्य में दोबारा सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से माँ बनना संभव नहीं है।

CMO नरेंद्र कुमार पर खानापूर्ति जांच का आरोप

मामले की शिकायत मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) नरेंद्र कुमार से की गई, लेकिन आरोप है कि CMO ने निष्पक्ष जांच के बजाय केवल खानापूर्ति के लिए जांच कमेटी गठित की। पीड़िता का कहना है कि करीब दो महीने तक मामले को जानबूझकर लटकाया गया, ताकि अस्पताल और दोषी डॉक्टरों को राहत मिल सके। इस दौरान पीड़िता पर समझौते का दबाव भी बनाया गया।

CMO समेत 6 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज

लगातार संघर्ष और न्यायिक हस्तक्षेप के बाद आखिरकार पुलिस ने CMO नरेंद्र कुमार सहित कुल 6 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। इसमें अस्पताल प्रबंधन, संबंधित डॉक्टर और अन्य जिम्मेदार अधिकारी शामिल हैं। मामला दर्ज होने के बाद स्वास्थ्य विभाग और निजी अस्पतालों की जवाबदेही को लेकर बहस तेज हो गई है।

निजी अस्पतालों की मनमानी पर सवाल

यह मामला केवल एक महिला की पीड़ा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है कि आखिर निजी अस्पतालों की लापरवाही पर कार्रवाई क्यों नहीं होती और स्वास्थ्य विभाग कब तक ऐसे मामलों में आंख मूंदे रहेगा।

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