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विश्व रंग 2025 का भव्य उद्घाटन: भारतीय परंपरा, वैश्विक संवाद और बहुरंगी संस्कृति का संगम

भोपाल ।  रवीन्द्र भवन परिसर में अंतरराष्ट्रीय साहित्य–कला महोत्सव ‘विश्व रंग 2025’ के सातवें संस्करण का भव्य शुभारंभ हुआ। समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री पृथ्वीराज सिंह, टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के महानिदेशक डॉ. संतोष चौबे, SGSU के कुलाधिपति डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, तथा सह–निदेशक डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी सहित देश–विदेश के अनेक प्रख्यात साहित्यकारों व सांस्कृतिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। समारोह में ‘विश्वरंग हिंदी रिपोर्ट’, ‘विश्वरंजन क्लॉज़’ का लोकार्पण तथा प्रतिष्ठित रचनाकार ममता कालिया, हरीश मीनाश्रु, चन्द्रभान ख्याल, एच.एन. शिवप्रकाश, लक्ष्मण गायकवाड़ और परेश नरेन्द्र कामत को ‘विश्वरंग मानद अलंकरण’ प्रदान किया गया। इसी अवसर पर भारतीय डाक विभाग के विशेष अलंकरण का विमोचन भी किया गया, जिसने आयोजन की गरिमा को नई ऊँचाई दी। राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि विश्व रंग भारतीय परंपरा और आधुनिक विचारधारा के बीच सशक्त सांस्कृतिक सेतु। उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन में महामहिम राज्यपाल ने कहा कि साहित्य और संस्कृति समाज की नैतिक दिशा तय करती हैं। विश्व रंग ऐसा मंच है, जो भारतीय परंपरा, आधुनिक विचार और वैश्विक संवाद को एक सूत्र में पिरोकर एक सशक्त सांस्कृतिक सेतु का निर्माण करता है।

पूर्व राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह का संदेश भारतीय साहित्य वैश्विक समाज के लिए मानवीय संवेदना का अद्भुत दृष्टिकोण मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं और साहित्य की वैश्विक पहुँच पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय साहित्य मानवता, संवेदना और सांस्कृतिक संतुलन का अद्भुत दृष्टिकोण विश्व समुदाय को प्रदान करता है।
डॉ. संतोष चौबे विश्व रंग सभ्यता, बहुभाषिकता और रचनात्मक चेतना का महोत्सव

अपने संबोधन में डॉ. चौबे ने कहा कि विश्व रंग केवल आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक आत्मविश्वास और रचनात्मक चेतना का विस्तार है। यह मंच बहुभाषिकता, सह–अस्तित्व और सभ्यता संवाद की साझा ऊर्जा को अभिव्यक्त करता है।

मानद अलंकरण का उद्देश्य, भाषाओं की समृद्धि और वैश्विक एकता का उत्सव

सह–निदेशक डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी ने मानद अलंकरण को भारतीय भाषाओं की शक्ति और वैश्विक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताया।

भव्य शोभायात्रा: भारत और विश्व की सांस्कृतिक विविधता का मनमोहक प्रदर्शन

उद्घाटन से पहले निकली शोभायात्रा में
असम, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के साथ अनेक विदेशी दलों ने पारंपरिक वेशभूषा व लोकधुनों के साथ भाग लिया। बिहू, मटकी, गरबा, राजवाड़ी, खड़ा, आड़ा जैसी लोकनृत्य प्रस्तुतियों ने परिसर को उत्साह, रंग और ऊर्जा से भर दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा के समक्ष प्रस्तुत बाउल और रवीन्द्र संगीत ने शोभायात्रा को आध्यात्मिक गरिमा प्रदान की।

प्रदर्शनियों में भारतीय विरासत का अनूठा संगम

रविन्द्र भवन परिसर में लगी विभिन्न प्रदर्शनियों ने पहले ही दिन भारी आकर्षण बटोरा असम हैंडलूम व पारंपरिक आभूषण, मणिपुर फेस्टिवल, मालवा की मटकी परंपरा गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश की लोक परिधान व हस्तशिल्प

भारतीय ज्ञान–परंपरा, ऋषि व वैज्ञानिक प्रदर्शनी

गिरमिटिया इतिहास और 100 वर्षों की समाचार सुर्खियों पर आधारित विशेष प्रदर्शनियाँ। इन सभी ने भारतीय संस्कृति की गहराई, इतिहास और रचनात्मक यात्रा को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।

श्रीराम भारतीय कला केंद्र की भव्य प्रस्तुति — ‘कृष्णा’ नृत्य–नाटिका ने मोहित किया

श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा प्रस्तुत पौराणिक नृत्य–नाटिका ‘कृष्णा’ (48वाँ संस्करण) ने दर्शकों को ढाई घंटे तक मंत्रमुग्ध रखा। कृष्ण जन्म से लेकर महाभारत तक की लीला को मयूरभंज छऊ, कलारीपयट्टू, भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों, भव्य परिधान, प्रकाश व्यवस्था और संगीत, के अद्भुत संयोजन से मंचित किया गया। निर्देशक पद्मश्री शोभा दीपक सिंह की दृष्टि ने प्रस्तुति को भावपूर्ण, ऊर्जावान और आध्यात्मिक प्रभाव से भर दिया।

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