State

निमोनिया से बचाव और उपचार पर विशेषज्ञों की सलाह: भोपाल में ‘सांस अभियान’ कार्यशाला आयोजित

भोपाल। निमोनिया से होने वाली बाल मृत्यु दर को कम करने और इससे बचाव के लिए भोपाल में ‘सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रलाइज निमोनिया सक्सेसफुली’ (SAANS) अभियान के तहत एक उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया। चिरायु मेडिकल कॉलेज में आयोजित इस कार्यशाला में विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स ने हिस्सा लिया।

कार्यशाला में बाल रोग विशेषज्ञों और मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को निमोनिया की रोकथाम, प्रबंधन और उपचार प्रोटोकॉल की जानकारी दी गई। प्रमुख चिकित्सा संस्थानों जैसे एम्स भोपाल, गांधी मेडिकल कॉलेज, पीपल्स मेडिकल कॉलेज, चिरायु, एलएन मेडिकल कॉलेज और आरकेडीएफ के विशेषज्ञ भी शामिल हुए।

निमोनिया से बाल मृत्यु दर कम करने का लक्ष्य

भारत में पांच वर्ष तक की आयु के बच्चों में 17.5% मृत्यु निमोनिया के कारण होती है। स्वास्थ्य विभाग का लक्ष्य 2025 तक यह दर 3 हजार प्रति जीवित जन्म से कम करना है। इसके लिए 12 नवंबर से 28 फरवरी तक ‘सांस अभियान’ चलाया जा रहा है, जिसके तहत मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर पांच वर्ष तक के बच्चों की स्वास्थ्य जांच कर रहे हैं। साथ ही निमोनिया से संबंधित अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर करने का प्रयास भी किया जा रहा है।

निशुल्क उपचार और टीकाकरण उपलब्ध

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, डॉ. प्रभाकर तिवारी ने बताया कि निमोनिया का उपचार सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में निशुल्क उपलब्ध है। उप स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक जेंटामाइसिन और एमॉक्सिसिलिन जैसे दवाएं उपलब्ध करवाई गई हैं। नियमित टीकाकरण अभियान के अंतर्गत पीसीवी टीका भी बच्चों को निशुल्क लगाया जा रहा है।

विशेषज्ञों की सलाह

डॉ. रितेश रावत (जिला टीकाकरण अधिकारी): निमोनिया के लक्षणों में तेज बुखार, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, और छाती धंसने जैसे लक्षण शामिल हैं। बचाव के लिए नियमित टीकाकरण, छह माह तक सिर्फ स्तनपान और उसके बाद पूरक आहार, साबुन से हाथ धोने और वायु प्रदूषण कम करने की सलाह दी गई।

डॉ. एसएम जोशी (WHO सर्विलेंस मेडिकल ऑफिसर): कुपोषण और अपूर्ण टीकाकरण निमोनिया के मुख्य कारण हैं। बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए टीकाकरण, पोषण और स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।


प्रशिक्षण में दी गई जानकारी

वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. शोभा खोत ने बताया कि गंभीर अवस्था में बच्चे को उच्च स्वास्थ्य संस्थान में रेफर करने से पहले जेंटामाइसिन इंजेक्शन और एमॉक्सिसिलिन सिरप देना चाहिए।
डॉ. इकबाल अंसारी ने कहा कि बच्चों में सांस की गति का सही तरीके से आकलन कर निमोनिया की पहचान की जा सकती है। उन्होंने बताया कि दो माह तक के बच्चों में प्रति मिनट 60 या अधिक, 2 माह से 1 वर्ष तक 50 या अधिक, और 1 से 5 वर्ष तक 40 या अधिक सांस लेने की दर निमोनिया का संकेत हो सकती है।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य विभाग का यह प्रयास निमोनिया से होने वाली मौतों को रोकने और इस बीमारी को प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। निशुल्क इलाज और जागरूकता अभियान से निमोनिया को नियंत्रित करने की दिशा में यह कार्यशाला एक बड़ा कदम है।

Related Articles