न्यायपालिका पर बयान से घिरे भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है आपराधिक अवमानना की कार्रवाई

नई दिल्ली । भाजपा सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार मामला बेहद गंभीर है, क्योंकि उन्होंने देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश CJI संजीव खन्ना के खिलाफ एक विवादित बयान दे दिया है। उनके इस बयान को लेकर अटॉर्नी जनरल को शिकायत पत्र भेजा गया है, जिससे अब आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।
लोकसभा से निलंबन और कानूनी कार्रवाई की संभावना
निशिकांत दुबे पर पहले से ही कई राजनीतिक और कानूनी मामलों की तलवार लटक रही है, और अब उनके इस बयान से लोकसभा से निलंबन की भी अटकलें तेज हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी करना न केवल संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि यह न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य भी माना जा रहा है।
‘न्यायपालिका गुंडागर्दी नहीं सहेगी’ – जन भावना साफ़
सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक, आम जनता और कई नेताओं ने इस बयान की तीखी आलोचना की है। लोगों का कहना है कि देश की न्यायपालिका किसी भी प्रकार की बकवास या दबाव स्वीकार नहीं करेगी। CJI संजीव खन्ना जैसे जज, जो हंसराज खन्ना जैसे न्यायिक दिग्गज के परिवार से आते हैं, उनके खिलाफ बयानबाज़ी करना सीधे तौर पर संविधान की आत्मा पर हमला है।
निशिकांत दुबे और उनका दोहरापन भी चर्चा में
सोशल मीडिया पर लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जो सांसद गौ रक्षा, हिंदू धर्म और राष्ट्रवाद की बात करते हैं, उन्होंने अपने बेटे को लंदन पढ़ने क्यों भेजा? रिपोर्ट्स के मुताबिक, कनिष्क दुबे अब लंदन में एक बैंक में नौकरी कर रहे हैं और वहीं बस चुके हैं।
जनता पूछ रही है कि “यदि वे वास्तव में अपने कथित आदर्शों के प्रति इतने प्रतिबद्ध हैं, तो बेटे को बजरंग दल या गौ रक्षा दल में क्यों नहीं भेजा?”
न्यायपालिका बनाम सत्ता – इतिहास फिर दोहरा रहा है?
यह मामला हमें 1970 के दशक की याद दिलाता है, जब हंसराज खन्ना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े होकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बचाया था। अब उसी परंपरा को CJI संजीव खन्ना आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि सत्ता पक्ष के कुछ लोग इससे असहज हैं।
निष्कर्ष:
निशिकांत दुबे के बयान से उत्पन्न विवाद अब केवल एक राजनीतिक मसला नहीं रहा, बल्कि यह सीधे-सीधे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता और संविधान की मर्यादा से जुड़ा मामला बन चुका है। यदि समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह लोकतंत्र के तीन स्तंभों के बीच संतुलन को बिगाड़ सकता है।





