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बिहार: दोस्त की प्रेमिका के प्रेग्नेंट होने पर युवक पर रेप केस, पंचायत ने 6 लाख में किया ‘सौदा’; 5 साल जेल के बाद अदालत से बाइज्जत बरी

दरभंगा । बिहार के दरभंगा जिले से न्याय व्यवस्था और सामाजिक दबावों पर सवाल खड़ा करने वाला एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक युवक पर दोस्त की प्रेमिका के गर्भवती होने के बाद दुष्कर्म का आरोप लगाया गया। पंचायत के दबाव में 6 लाख रुपये में कथित ‘समझौता’ कराया गया, लेकिन इसके बावजूद युवक को पांच साल तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया है।

दरभंगा निवासी मुकेश कुशवाहा  के अनुसार, उसका दोस्त लंबे समय से एक युवती के साथ प्रेम संबंध में था। दोनों के बीच सहमति से संबंध बने, जिसके बाद युवती गर्भवती हो गई। परिवार को जब इस बात की जानकारी मिली तो सामाजिक बदनामी के डर से मामला पंचायत तक पहुंचाया गया।

आरोप है कि पंचायत में दबाव बनाकर मुकेश कुशवा पर दुष्कर्म का केस डालने की धमकी दी गई और ‘समाज में मामला न जाए’ इसके लिए 6 लाख रुपये में सौदा तय कराया गया। पीड़ित मुकेश का दावा है कि उसने किसी तरह रुपये जुटाकर दिए, लेकिन इसके बाद भी उसके खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज करवा दिया गया।

मामला दर्ज होते ही मुकेश कुशवाहा को गिरफ्तार कर लिया गया। निचली अदालत में सुनवाई के दौरान परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और बयान के आधार पर उसे दोषी ठहराया गया और पांच साल की सजा सुना दी गई। युवक ने इस फैसले को उच्च अदालत में चुनौती दी और लगातार अपनी बेगुनाही साबित करने की कोशिश करता रहा।

अदालत का फैसला:
लंबी सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष के सबूत कमजोर हैं, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयान आपस में मेल नहीं खाते। अदालत ने यह भी माना कि मामला सहमति से बने संबंधों का था, जिसे बाद में सामाजिक दबाव में दुष्कर्म का रूप दिया गया। इन आधारों पर युवक को बाइज्जत बरी कर दिया गया।

सिस्टम पर सवाल:
यह मामला पंचायतों द्वारा किए जाने वाले कथित ‘सौदों’, झूठे आरोपों और न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में निष्पक्ष जांच और समयबद्ध न्याय बेहद जरूरी है, ताकि निर्दोष लोगों की जिंदगी बर्बाद न हो।

निष्कर्ष:
पांच साल जेल काटने के बाद मिली बरी होने की राहत युवक के लिए देर से आया न्याय है। यह घटना समाज और सिस्टम—दोनों के लिए चेतावनी है कि सामाजिक दबाव और पंचायतों के फैसले कानून से ऊपर नहीं हो सकते।

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