
भोपाल। मध्यप्रदेश के पंचायत व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हुए प्रदेशभर के सरपंचों ने बड़ा आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकारी कामकाज और विकास योजनाओं के लिए जारी होने वाले बजट का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा अधिकारी और कर्मचारी ही हजम कर जाते हैं। सरपंचों का कहना है कि इस हिस्से में उनका कोई हिस्सा नहीं होता, लेकिन जब गांव में कोई काम कराने की बारी आती है तो बची हुई राशि आधे से भी कम रह जाती है। ऐसे हालात में सरपंच मजबूरी में अधूरे पैसों से ही विकास कार्य पूरे करने का प्रयास करते हैं।
आधे पैसों में पूरा करना पड़ता है गांव का विकास
सरपंचों ने तंज कसते हुए कहा कि अगर हम आधे-अधूरे पैसों में ही गांव का काम निपटा रहे हैं, तो हमें “किफ़ायती विकास अवार्ड” मिलना चाहिए। उन्होंने बताया कि अधिकारी–कर्मचारियों की भ्रष्टाचारी मानसिकता और कमीशनखोरी की वजह से योजनाओं का असली लाभ गांव तक नहीं पहुंच पाता। ग्रामीण विकास के नाम पर जो राशि पंचायतों को दी जाती है, उसमें से बड़ी रकम तो प्रक्रिया और कमीशन में ही खत्म हो जाती है। नतीजतन, सड़क, नल-जल योजना, नाली निर्माण और सामुदायिक भवन जैसे काम पूरे नहीं हो पाते।
प्रह्लाद पटेल के विभाग पर उठे सवाल
सरपंचों के इन आरोपों ने सीधे-सीधे पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल के विभाग पर सवाल खड़ा कर दिया है। सरपंचों का कहना है कि यदि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो तो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं सामने आएंगी। उनका तर्क है कि जब तक पंचायतों को स्वतंत्र अधिकार और पारदर्शी वित्तीय व्यवस्था नहीं मिलेगी, तब तक गांवों का असली विकास संभव नहीं हो पाएगा।
जांच और कार्रवाई की मांग
इस पूरे प्रकरण ने राज्य सरकार और पंचायत विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीण प्रतिनिधियों ने मांग की है कि सरपंचों के इन आरोपों की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। साथ ही, पंचायतों के बजट का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए सख्त निगरानी तंत्र बनाया जाए।