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भ्रष्टाचार में लिप्त बैंक अधिकारियों को सज़ा: पद का दुरुपयोग कर आदिवासी किसान की भूमि नीलाम करने का था आरोप

भोपाल। मध्यप्रदेश के विशेष न्यायालय, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के न्यायाधीश मनोज कुमार सिंह ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जिला सहकारी एवं ग्रामीण विकास बैंक के अधिकारियों सहित कुल पांच आरोपियों को भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और पद के दुरुपयोग के गंभीर आरोपों में दोषी मानते हुए कठोर कारावास की सज़ा सुनाई है। इस प्रकरण में शासन की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्रीमती हेमलता कुशवाह ने पैरवी की।

अधिकारियों ने षडयंत्रपूर्वक की धोखाधड़ी, आदिवासी किसान की भूमि नियम विरुद्ध नीलाम

विशेष लोक अभियोजक हेमलता कुशवाह ने बताया कि विक्रय अधिकारी हरिहर प्रसाद मिश्रा, पुष्टिकर्ता अधिकारी आर.एस. गर्ग, महाप्रबंधक हुकुमचंद सिंघाई और क्रेता राजेंद्र प्रसाद पाटीदार पर धारा 420, 120-बी भादवि तथा धारा 13(1)(डी) सहपठित 13(2) पीसी एक्ट के तहत गंभीर आरोप सिद्ध हुए। न्यायालय ने सभी आरोपियों को धारा 420/120-बी में 3-3 वर्ष का सश्रम कारावास तथा 1,000 रुपये अर्थदंड का आदेश दिया। इसके अलावा तीन अधिकारियों  हरिहर प्रसाद मिश्रा, आर.एस. गर्ग और हुकुमचंद सिंघाई  को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत अतिरिक्त 3-3 वर्ष का सश्रम कारावास और 1,000 रुपये अर्थदंड से दंडित किया गया।

घटना का विवरण: 18,000 रुपये के लोन के बदले 4.50 एकड़ भूमि मात्र 1.10 लाख में नीलाम

ग्राम बरई, तहसील हुजूर (भोपाल) के आदिवासी किसान नारायण सिंह ने वर्ष 1989 में 18,000 रुपये का कृषि लोन लिया था। आरोपियों ने षड्यंत्रपूर्वक किसान की 4.50 एकड़ उपजाऊ भूमि, जिसकी बाजार कीमत कहीं अधिक थी, को वर्ष 2000 में केवल 1 लाख 10 हजार रुपये में राजेंद्र प्रसाद पाटीदार को नीलाम कर दिया। नीलामी प्रक्रिया न केवल नियमों के विपरीत थी, बल्कि बाजार मूल्य एवं कलेक्टर रेट से अत्यंत कम कीमत पर अवैधानिक रूप से की गई थी। जांच में यह भी सामने आया कि आरोपियों ने नीलामी से संबंधित नोटशीट में कूटरचित दस्तावेज तैयार कर संयुक्त पंजीयक, सहकारी संस्थाएं भोपाल से अवैध रूप से नीलामी की पुष्टि भी करवाई।
लोकायुक्त पुलिस की जांच के बाद तय हुआ अपराध

किसान की शिकायत के आधार पर लोकायुक्त पुलिस ने विस्तृत जांच की, जिसके बाद आरोपियों के विरुद्ध अपराध दर्ज कर चालान न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों, साक्ष्यों और तर्कों से सहमत होकर न्यायालय ने दोष सिद्ध मानते हुए सभी आरोपियों को सज़ा सुनाई। यह फैसला उन मामलों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार और शक्ति का दुरुपयोग कर कमजोर वर्गों के अधिकारों का हनन करते हैं।

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