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एम्स भोपाल में ऑटिस्टिक प्राइड डे पर जागरूकता अभियान: न्यूरो-विविधता को लेकर समाज को किया गया संवेदनशील

भोपाल ।  एम्स भोपाल में ऑटिस्टिक प्राइड डे के अवसर पर विशेष जन-जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ, जिसका उद्देश्य समाज में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार (ASD) को लेकर समझ और संवेदनशीलता बढ़ाना था। इस दिवस को वैश्विक स्तर पर ऑटिस्टिक व्यक्तियों की विशिष्ट क्षमताओं, पहचान और अधिकारों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

क्या है ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार?

ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार (ASD) एक न्यूरोलॉजिकल विकासात्मक भिन्नता है, जिसमें व्यक्ति की सोचने, महसूस करने, संवाद करने और सामाजिक व्यवहार करने की शैली पारंपरिक मानकों से अलग होती है। इसे न्यूरो-विविधता के रूप में देखा जाता है, यानी यह दुनिया को अनुभव करने का एक भिन्न लेकिन समान रूप से मूल्यवान तरीका है। कई ऑटिस्टिक व्यक्तियों में संगीत, गणित, कला या तकनीकी कौशल जैसे क्षेत्रों में असाधारण क्षमताएँ भी देखने को मिलती हैं।

एम्स भोपाल में आयोजित प्रमुख गतिविधियाँ

इस अवसर पर एम्स भोपाल के विशेषज्ञ चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा एक श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें शामिल थे:

संवाद सत्र (Interactive Sessions): आमजन, अभिभावकों और शिक्षकों को ASD से जुड़ी जानकारी दी गई।

प्रदर्शनियाँ (Exhibitions): जिसमें ऑटिज़्म से जुड़ी मिथकों, सच्चाइयों और सहयोगात्मक उपायों को सरल भाषा में प्रदर्शित किया गया।

व्यावहारिक मार्गदर्शन सत्र (Hands-on Guidance): ऑटिज़्म के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान, सही परामर्श और पारिवारिक सहयोग जैसे विषयों पर विशेष जानकारी दी गई।


निदेशक का संदेश

इस अवसर पर संस्थान के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने कहा:

“जागरूकता, एक समावेशी और संवेदनशील समाज की ओर पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है। ऑटिस्टिक प्राइड डे हमें यह समझने और स्वीकारने का अवसर देता है कि हर व्यक्ति – चाहे वह न्यूरोलॉजिकल दृष्टि से भिन्न हो – बराबरी के सम्मान और अवसर का हकदार है। जब हम ऑटिज़्म को एक बीमारी की बजाय सोच और अनुभव की एक अलग शैली के रूप में देखते हैं, तभी हम एक सच्चे मानवतावादी समाज का निर्माण करते हैं।”



समाज को संदेश

इस जन-जागरूकता अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों को यह समझाना था कि ऑटिस्टिक व्यक्तियों को सहानुभूति नहीं, सम्मान की ज़रूरत है। ऐसे व्यक्तियों के लिए समर्थनपूर्ण, सहयोगी और समावेशी वातावरण तैयार करना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है। ऑटिज़्म को लेकर फैली गलत धारणाओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करना इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य रहा।

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