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एम्स ने फॉरेंसिक साक्ष्यों की सुरक्षा के लिए विकसित किया टेंपर प्रूफ क्यूआर लेबल


डिजिटल इंडिया मिशन को मिलेगा बल, न्यायिक प्रक्रिया में आएगा पारदर्शिता और भरोसे का नया आयाम
भोपाल, । एम्स ने फॉरेंसिक विज्ञान और चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि दर्ज की है। संस्थान के फॉरेंसिक मेडिसिन एवं टॉक्सिकोलॉजी विभाग ने फॉरेंसिक साक्ष्यों के सुरक्षित संग्रहण और न्यायालय तक पहुंचाने की प्रक्रिया को अत्याधुनिक और सुरक्षित बनाने के लिए एक टेंपर-प्रूफ, क्यूआर कोड युक्त लेबलिंग प्रणाली विकसित की है। यह नवाचार भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषित दो वर्षीय अनुसंधान परियोजना का हिस्सा है और इसका उद्देश्य पुलिस बल तथा फॉरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा झेली जा रही व्यावहारिक चुनौतियों को हल करना है, जैसे साक्ष्य के लेबल का धुंधला या फट जाना, नमूनों का आपस में बदल जाना, भंडारण के दौरान नमी या चूहों से नुकसान, चेन ऑफ कस्टडी के टूटने से न्याय प्रक्रिया में बाधा आदि।  इस प्रणाली में एक एकल-उपयोग वाला, जलरोधक और अटूट लेबल शामिल है, जिसमें संस्थागत मुहर, एन्क्रिप्टेड क्यूआर कोड, कंटेनर पर सीधा चिपकाने की सुविधा, डिजिटल ट्रेसबिलिटी, टेंपर डिटेक्शन तकनीक शामिल है। यह लेबल न केवल जल, फॉर्मालिन, अल्कोहल और साल्ट सॉल्यूशन जैसे प्रिज़र्वेटिव्स के प्रति रेसिस्टेंट है, बल्कि यह लीक होने या मौसम के प्रभाव के बावजूद मजबूती से चिपका रहता है। इस तकनीक को प्रोफेसर डॉ. राघवेन्द्र कुमार विदुआ और इंटर्न डॉ. पल्लवी सिंह ने मिलकर विकसित किया है।
उल्लेखनीय है कि इस प्रणाली को कई प्रायोगिक परीक्षणों से गुजारा गया और यह पारंपरिक कागजी लेबलिंग की तुलना में ज्यादा मजबूत, पठनीय और सुरक्षित साबित हुई है।

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