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40 के दशक में क्रिकेटरों को मिलता था एक रुपया

मुम्बई । आजकल क्रिकेट में खिलाड़ियों को करोड़ों की रकम और ईनाम मिलते हैं।
आईपीएल में ही विजेता टीम को 20 करोड़ की राशि मिली है। इसके साथ ही क्रिकेटरों को सालाना करोड़ों के अनुबंध और विज्ञापन भी मिलते हैं।
वहीं पहले ऐसा नहीं था और एक समय ऐसा भी था जब क्रिकेटरों को एक मैच के लिए एक रुपया मिलता था जो बाद में बढ़ाकर पांच रुपया हुआ। तब क्रिकेटरों को आज जैसी सुविधाएं भी नहीं मिलती थीं और उन्हें देश में होने वाले मैचों में ट्रेन से भेजा जाता था। इसके अलावा उन्हें सामान्य होटलों में ठहराया जाता था। वहीं आज खिलाड़ियों की नीलामी में उन्हें टीमें लाखों-करोड़ों में खरीदती हैं। 40 के दशक में भारतीय क्रिकेटरों को एक टेस्ट मैच खेलने के लिए एक रुपया मिलता था।
भारतीय टीम की ओर से 40 के दशक में खेलने वाले माधव आप्टे ने बीसीसीआई के 75 साल पूरे होने के अवसर पर एक समारोह में कहा था कि भारतीय टीम जब 40 के दशक में खेलती थी तो भारतीय क्रिकेटरों को एक टेस्ट मैच खेलने पर एक रुपया मिलता था। ये रकम भी लांड्री भत्ते के रूप में दी जाती थी। जिससे वे अपनी सफेद पोशाक को साफ रख सकें। इसके बाद ये रकम बढ़ाकर पांच रुपये प्रति टेस्ट मैच कर दी गई। उस समय वे जहाज से नहीं बल्कि ट्रेन से यात्रा करते थे। फिर मैच फीस बढ़कर पांच रुपये हुई। वहीं 1955 के आसपास भारतीय क्रिकेटरों को 250 रुपये मिलने लगे। तब बीसीसीआई आज की तरह धनी नहीं थी और कई बार उसके पास क्रिकेटरों को मैच फीस देने के भी पैसे नहीं होते थे।
क्रिकेटर तब ट्रेन से सफर करते थे। 70 के दशक तक भी भारतीय क्रिकेटरों को हर मैच के लिए दो हजार रुपये के आसपास मिलते थे। वहीं 80 के दशक में प्रति टेस्ट मैच फीस पांच हजार से दस हजार रुपये तक पहुंची। वहीं जब बीसीसीआई ने पहली बार एक अक्टूबर 2004 को क्रिकेटर अनुबंध प्रणाली शुरु की तो खिलाड़ियों को भारी रकम मिलने लगी। उसके बाद से ही क्रिकेटरों के मालामाल होने का सिलसिला शुरु हो गया।

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