गुना (मध्यप्रदेश)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गुना से विधायक पन्नालाल शाक्य का एक भावुक बयान इन दिनों चर्चा में है, जिसमें उन्होंने प्रशासनिक सिस्टम द्वारा उपेक्षा की शिकायत करते हुए कहा कि “मैं आरक्षित सीट का विधायक हूं, इसलिए मेरी कोई सुनवाई नहीं होती। गरीब की लुगाई और गांव की भोजाई की तरह मेरा भी हाल है।”
इस टिप्पणी ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि जातिगत और सामाजिक न्याय के मुद्दों को भी फिर से केंद्र में ला खड़ा किया है।
क्या है पूरा मामला?
विधायक पन्नालाल शाक्य ने एक सार्वजनिक मंच से अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि उन्हें अक्सर प्रशासनिक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह आरक्षित (अनुसूचित जाति) सीट से विधायक हैं।
उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “गरीब की लुगाई और गांव की भोजाई का जैसे कोई सम्मान नहीं होता, वैसे ही मेरी बातों को नजरअंदाज किया जाता है।”
भाजपा के अंदरूनी मतभेद या प्रशासनिक लापरवाही?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पन्नालाल शाक्य का यह बयान राज्य प्रशासन और सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर संवाद की कमी को उजागर करता है। वहीं कई दलित संगठनों ने भी इस बयान पर चिंता जताते हुए इसे जातिगत भेदभाव का उदाहरण बताया है।
सियासी हलचल तेज
विधायक के इस बयान ने न केवल भाजपा नेतृत्व को सोचने पर मजबूर किया है, बल्कि विपक्षी दलों को भी मुद्दा थमा दिया है। कांग्रेस और समाजवादी नेताओं ने इसे भाजपा की “सामाजिक न्याय के प्रति असंवेदनशीलता” करार दिया है।
निष्कर्ष: गुना विधायक पन्नालाल शाक्य का बयान इस बात का संकेत है कि आरक्षित वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों को भी अक्सर सिस्टम की उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। यह मुद्दा आने वाले समय में मध्यप्रदेश की राजनीति और सामाजिक विमर्श में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
गुना विधायक पन्नालाल शाक्य का छलका दर्द: “मैं आरक्षित सीट का विधायक हूं, इसलिए नहीं होती मेरी सुनवाई”
