
लेखक : अरुण पटेल
-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
-सम्पर्क: 9425010804, 7999673990
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता आदिवासियों के बीच से होकर गुजरता है और आदिवासी वर्ग जिसका साथ देता है वह सत्ता के अधिक करीब पहुंच जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का समूचा ध्यान अब आदिवासी समुदाय के बीच भाजपा की मजबूत पैठ बनाने का है ताकि यह वर्ग कांग्रेस से दूर हटे और भाजपा से जुड़े। वैसे कुछ अंचलों में आदिवासियों का एक बड़ा समूह भाजपा से जुड़ भी चुका है लेकिन अभी भी कांग्रेस की उन पर पकड़ जारी है। क्योंकि आदिवासियों के मन-मस्तिष्क में अभी तक इंदिरा गांधी की यादें ताजा हैं। छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज तथा मध्यप्रदेश में राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार आदिवासी वर्ग से हैं इसलिए दोनों राज्यों में इन दोनों की जिम्मेदारी अधिक है ताकि यह दोनों आदिवासी वर्ग से अपनी पार्टी को जोड़ कर रख सकें। इसी पर भरोसा कर पार्टी ने इन्हें कहीं संगठन तथा कहीं विधायी पक्ष का चेहरा बनाया हुआ है। जहां तक उमंग सिंघार का सवाल है उनके पीछे दिग्विजय सिंह सरकार में उपमुख्यमंत्री और बाद में नेता प्रतिपक्ष रहीं जमुनादेवी की लम्बी चौड़ी विरासत है जबकि दीपक बैज भी आदिवासी बहुल बस्तर संभाग से आते हैं।
जनजाति गौरव दिवस का भाजपा ने बड़े पैमाने पर आयोजन किया और जबलपुर में राज्य स्तरीय कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सौगातों की मूसलाधार झड़ी लगा दी तो वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वर्चुअल सम्बोधन में कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने छः दशकों तक आदिवासियों को हाशिए पर रखा है। उनका कहना था कि स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समाज ने अपना लहू बहाया है और आदिवासी क्रांतिकारियों के योगदान से स्वतंत्रता संग्राम के अध्याय भरे पड़े हैं लेकिन कुछ लोगों के परिवार को आजादी का श्रेय देने के साथ क्रांतिकारियों के बलिदान और त्याग व तपस्या को भुला दिया गया है। मोदी का कहना था कि 2014 के पहले कोई शहीद बिरसा मुंडा के बलिदान को याद नहीं करता था यह परम्परा हमने शुरु की। जनजाति गौरव अगली पीढ़ियों को बताने के लिए म्यूजियम बनाया। जनजाति समाज की बोली व संगीत को संरक्षित किया जायेगा। आदिवासी वर्ग की ही छतरपुर की क्रांति गौड़ जो महिला विश्व कप क्रिकेट विजेता टीम की अहम् सदस्य थीं को उन्होंने एक करोड़ रुपये का चेक दिया। इसके साथ ही आदिवासियों में विशेष सम्मान रखने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती के नाम पर प्रदेश के सभी बालिका आश्रम व छात्रावासों के नाम रखे जायेंगे। बालक आश्रमों का नाम शहीद राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर होगा। पांच हजार छात्रावास अधीक्षकों की नियुक्ति करने की घोषणा भी इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने की। मोहन यादव ने आदिवासियों के बीच कहा कि राष्ट्र के स्वाभिमान और स्वतंत्रता पर जब प्रश्न खड़े हुए तब जनजाति समुदाय सबसे आगे खड़ा रहा। प्रदेश में आदिवासी बलिदानियों की समृद्ध परम्परा रही है। रानी दुर्गावती, राजा शंकर शाह , रघुनाथ शाह , बाजा नायक, भीमा नायक, टंट्या मामा ने जल, जंगल, जमीन बचाने व देश की स्वाधीनता के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी। मुख्यमंत्री यह भी याद दिलाने से नही चूके कि जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तो जनजाति मंत्रालय बनाया गया। जबकि कांग्रेस ने उन्हें दस साल तक हाशिए पर रखा तथा भाजपा ने बजट बढ़ाया। मैंने स्वयं भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली की मिट्टी से तिलक कर आदिवासी कल्याण का संकल्प लिया था और स्किल सेल बीमारी से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चल रहा है। वे यह भी बताने से नहीं भूले कि आखिर भाजपा सरकार ने आदिवासियों के लिए क्या-क्या किया। रानी दुर्गावती की जयंती पर जबलपुर व सिंग्रामपुर में और क्रांति नायक भभूत सिंह के स्थान पर पचमढ़ी में केबिनेट बैठक की। टंट्या मामा के नाम खरगोन में विश्वविद्यालय खोला गया। प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में टंट्या मामा के नाम पर रेलवे स्टेशन का लोकार्पण भी किया गया। जनजाति कल्याण की जितनी योजनायें हो सकती हैं उन पर सरकार काम कर रही है।
राहुल का सख्त संदेश और भाजपा का तंज
नर्मदापुरम जिले जो पहले होशंगाबाद जिला था में सतपुड़ा पर्वत माला पर स्थित पचमढ़ी में कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के प्रशिक्षण शिविर में राहुल गांधी ने जो सख्त संदेश दिया है उस पर क्या वे कांग्रेस में अमल करा पायेंगे। यह शिविर पूरी तरह से प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष महेंद्र जोशी की देखरेख में हुआ और आयोजन की तैयारी भी उन्होंने ही कराई। यह यक्ष प्रश्न है कि क्या अलग-अलग दिशाओं में अपनी अंध महत्वाकांक्षाओं के घोड़े दौड़ाने वाले कांग्रेस नेताओं को राहुल एक दिशा में घोड़े दौड़ाने को विवश कर पायेंगे, क्योंकि इनकी यह आदत कई दशकों से पड़ी हुई है। उनका सख्त संदेश था कि गुटबाजी और ऐकला चलो की नीति अब नहीं चलेगी, अब एकजुटता व समन्वय बनाने के साथ सहमति के आधार पर निर्णय लिये जायें। जो नया नेतृत्व तैयार हो रहा है वह वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी न करे। विधानसभा चुनाव में अभी समय है इसलिए जिलाध्यक्ष दो साल में बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करें फिर मिशन 2028 यानी विधानसभा चुनाव की तैयारी होगी। जिलाध्यक्ष संगठन बनाते समय क्या वास्तव में मैदानी कार्यकर्ताओं को ढूंढ पायेंगे या उनकी दृष्टि भी उनकी ही गणेश परिक्रमा करने वाले और ड्राइंग रुम की शोभा बढ़ाने वाले लोगों तक ही जायेगी। जमीन से कटे और नेताओं से जुड़े कार्यकर्ता ही यदि तवज्जो पा गये तो फिर राहुल गांधी के संदेश पर अमल कैसे होगा। जब कांग्रेसी आपस में ही एक-दूसरे का विरोध कर रहे हैं तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कांग्रेस क्या इतनी मजबूत हो पायेगी कि वह उस भाजपा का मुकाबला करे जिसका एकमेव लक्ष्य कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालना है, क्योंकि अभी भी दोनों के मतों के बीच इतना फासला नहीं है कि जिसे कांग्रेस पाट न पाये। दिग्विजय सिंह के इंदौर के कार्यक्रम का एक प्रकार से जिला कांग्रेस द्वारा बहिष्कार करने की बात सामने आई। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, पूर्व मंत्री और पूर्व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह हों या डाॅ. गोविंद सिंह, एक प्रकार से कांग्रेस में हाशिए पर धकेल दिये गये हैं और पार्टी में अब उनकी इतनी भी पूछपरख नहीं है कि जितना उनका जनाधार है। जहां तक अजय सिंह का सवाल है मध्यप्रदेश के हर जिले व गांव में कोई न कोई उनका समर्थक और प्रशासक इसलिए मिल जाता है क्योंकि वे कांग्रेस के हैवीवेट राजनेता रहे अर्जुन सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। जहां तक अरुण यादव का सवाल है उनकी भी अपनी विरासत है और वे सहकारिता क्षेत्र के पुरोधा रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे हैं जिनका प्रदेश में जातिगत आधार भी है इसलिए अरुण यादव का प्रभाव कायम है। गोविंद सिंह भी सहकारिता से जुड़े एक दबंग नेता हैं और उनका भी अपने इलाके में अच्छा जनाधार है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी भी प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को कह चुके हैं कि इन सबको साथ लेकर चलना चाहिये। मध्यप्रदेश में आज भी सबसे अधिक व्यापक जनाधार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का है और उन्होंने भी शिविर में कहा कि ऐकला नहीं सबको साथ लेकर चलना होगा। यही कारण है कि राहुल गांधी ने समन्वय बनाकर सामूहिक निर्णय पर जोर दिया। लेकिन इस पर कितनी ईमानदारी से अमल होता है यह देखना भी राहुल की ही जिम्मेदारी होगी। अब देखने वाली बात यही होगी कि उनके दिए गये सख्त संदेश का अमल किस प्रकार होता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि राहुल गांधी ने समन्वय पर जोर दिया है और साथ ही यह भी निर्देशित किया है कि योग्यता से कोई समझौता नहीं होगा। वहीं दूसरी ओर भाजपा सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने तंज किया है कि राहुल गांधी राजनीति को गंभीरता से नहीं लेते हैं। बिहार चुनाव के बीच मध्यप्रदेश में जंगल सफारी का मजा ले रहे हैं। अनुशासन की बात करने वाले राहुल गांधी पहले अपने जीवन में अनुशासन लायें। शायद उनका इशारा राहुल गांधी के शिविर में दस मिनट देरी से पहुंचने और बाद में जंगल सफारी का आनंद लेने की ओर था।
और यह भी
राहुल गांधी ने देरी से आने के लिए शिविर के इंचार्ज से पूछा कि मेरे लिए क्या सजा है और उन्हें दस पुशअप करने की सजा दी गयी जिसे राहुल गांधी ने स्वीकार किया। शायद वे यह संदेश देना चाहते थे कि कांग्रेस में राहुल से लेकर आम कार्यकर्ता तक सभी समान हैं और सबको अनुशासन में रहकर एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा तथा मैदानी स्तर तक कांग्रेस की मजबूती के लिए जुटना होगा। वहीं दूसरी ओर अलीराजपुर के जनजाति गौरव दिवस के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव ने कहा कि यह दिवस हमारे लिए दीपावली और होली की तरह है। इसका मतलब साफ हो जाता है कि अब भारतीय जनता पार्टी का समूचा ध्यान कांग्रेस से आदिवासी वोट बैंक अधिक से अधिक छीन लेने का है और कांग्रेस के अंदर जो आदिवासी चेहरे हैं उनकी जिम्मेदारी इसीलिए ही बढ़ जाती है।



