
साल 2004 की एक शांत सुबह। ब्रिटिश तैराक रॉब होए अपनी छोटी बेटी के साथ न्यूज़ीलैंड के नॉर्थ आइलैंड के पास समुद्र में तैर रहे थे। लहरें सौम्य थीं, पानी में अजीब-सी शांति थी, ऐसी शांति, जिसमें इंसान खुद को पूरी तरह सुरक्षित मान ले। लेकिन समुद्र ने उसी दिन अपना एक असाधारण और चौंकाने वाला रूप दिखाया।
अचानक, डॉल्फ़िन्स का एक झुंड कहीं से प्रकट हुआ। वे रॉब और उनकी बेटी के चारों ओर घेरा बनाकर तैरने लगे, मानो उन्हें बीचों-बीच सुरक्षित रखना चाहते हों। यह कोई खेल नहीं था, उनका व्यवहार गंभीर, सतर्क और पूरी तरह उद्देश्यपूर्ण था।
जब भी रॉब उस घेरे से बाहर निकलने की कोशिश करते, दो डॉल्फ़िन्स उन्हें हल्के लेकिन दृढ़ अंदाज़ में वापस भीतर ले आतीं। न आक्रामकता, न घबराहट, बस एक साफ संदेश: यहीं रहो। लगभग चालीस मिनट तक डॉल्फ़िन्स ने यह सुरक्षा घेरा बनाए रखा और पिता–पुत्री को एक कदम भी बाहर नहीं जाने दिया।
इस अविश्वसनीय दृश्य को समुद्र तट पर मौजूद लाइफ़गार्ड्स और कई लोगों ने देखा। दूर से तस्वीरें ली गईं और अंततः लाइफ़गार्ड्स ने रॉब और उनकी बेटी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। उस समय तक किसी को असल वजह समझ नहीं आई थी।
सच सामने आया तब, जब ये तस्वीरें ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अख़बार ‘द गार्जियन’ में छपीं और वायरल हुईं। तब जाकर पता चला कि डॉल्फ़िन्स का यह व्यवहार महज़ संयोग नहीं था।
दरअसल, थोड़ी ही दूरी पर उन्हीं के पीछे लगभग तीन मीटर लंबा एक ग्रेट व्हाइट शार्क उसी इलाके में मंडरा रहा था। खतरे को पहले भांप लिया था डॉल्फ़िन्स ने।
यही कारण था कि उन्होंने अपने स्वभाव के अनुसार रक्षक की भूमिका निभाई एक ऐसी भूमिका, जो इंसान के लिए जीवन और मृत्यु के बीच का फर्क बन गई।
यह घटना उन अनेक किस्सों में एक और अध्याय जोड़ती है, जहां डॉल्फ़िन्स ने अपने असाधारण बौद्धिक और सामाजिक व्यवहार से इंसानों को शार्क जैसे घातक शिकारी से बचाया है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि डॉल्फ़िन्स अत्यंत बुद्धिमान, संवेदनशील और सहयोगी प्राणी हैं, और कई अध्ययनों में उन्हें इंसान के बाद पृथ्वी का सबसे समझदार जीव कहा गया है।
समुद्र की गहराइयों में, जहाँ इंसान खुद को अकेला समझता है, कभी-कभी प्रकृति खुद उसकी ढाल बन जाती है डॉल्फ़िन्स के रूप में।



