
एक बार फिर अदालत ने साफ कर दिया कि झूठे आरोपों की बुनियाद पर इंसाफ को झुकाया नहीं जा सकता। पति पर लगाए गए फर्जी केस आखिरकार कोर्ट में टिक नहीं पाए और सच की जीत हुई।
मामले में पत्नी ने तलाक के बदले 25 लाख रुपये की मांग रखी थी। लेकिन कोर्ट ने तथ्यों, सबूतों और पूरे रिकॉर्ड की गहन जांच के बाद करारा जवाब दिया,, एक रुपया भी नहीं।
अदालत ने स्पष्ट कहा कि यह मामला दबाव बनाकर पैसे ऐंठने की कोशिश जैसा प्रतीत होता है। न तो आरोप साबित हुए, न ही मुआवजे का कोई आधार पाया गया।
यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों के लिए राहत की खबर है जो फर्जी घरेलू हिंसा और दहेज मामलों में सालों तक मानसिक, सामाजिक और आर्थिक प्रताड़ना झेलते हैं।
अब यह तलाक नहीं, बल्कि न्याय की जीत का उत्सव है, जहाँ सच ने झूठ को हराया और कानून ने स्पष्ट संदेश दिया कि न्याय बिकता नहीं, और झूठ ज्यादा दूर तक चलता नहीं।





